Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम ] स्वोपज-हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृतोत्तरपर्याडसत्ता [ १३ पल्लामंखियभागो, लहू वि पणऽणत्तरेसु समयो वा । णवर्गविज्जेसु भवे, समयो सेससुरणिरयेसु ॥२७॥ णिरयपढमणिरयेसु, तित्थस्स महस्सवासचुलसीई । हस्मो अहियलहुठिई, णिरयदुर्ग-soणासु अल हुटिई ।।२७५।। णिग्यताअणिरयेसु. गुरू अहियतिअयग ऽस्थि णिरयदुगे। ऊणा गुरुकायठिई, देवेसु जेट्टकाठिई · । २७६।। भिन्नमुहुनमणाणं, चरमणिरयपणअणुत्तरेसु लहू । (गौतिः) बत्तीसाए ममयो, अडतीसाए वि सम्ममीसाणं ।।२७७ ।
वरि पणऽणुत्तरेसु, मासम्म भवे जहण्णकायटिई । मबह सेमाण लहू, लहुट्टिई गुरुठिई जेट्ठो । २७८ । सियराउतिगम्म लहू, होइ तिरिपणिदितिरिणरतिगेसु। भिन्नमुहत्तं जेट्टो, कोडितिभागोऽथि प्रचाणं ॥२७९।। साउअणरहि अधुवसत्ताण लहू लहुठिई खणोऽण्णेसि । ... गरि णिरयणरसुग्दुग-वेउब्धियसत्तगुच्चाणं ॥२८० । तिरिये लहुकार्याठई, तिणरेसु हवेज गरदुगुच्चाणं ।। तित्थस्स मुहुत्तंतो, तहि जेट्टो पुचकोडी से ॥२८१।। सत्तप्तु वि मग्गणासु, ओघव्वाहारसत्तगस्म गुरू । सेसाणं पयडीणं, हवेज्ज ससजेट्टकाटिई १२८२॥ जवरि तिरिये तिपल्ला, अमहिया होइ सम्ममासम्म ! विउवेगारसगस्स य, ओघव्ध गरदुगउच्चाणं ॥२८.३५, अप्पजत्तपणिदिय-तिरियपणिदियत से सु .. सम्वेसु. ।।. एगिदियविगलिंदिय-पणकायेसु . असण्णिम्मि। ॥२४॥

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