Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 45
________________ १२ । मुनिश्रीव रशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे । काल. अहिया समा अड णिरय-णग्सुरदुगविउवसत्तगुच्चाणं । हस्सो जिणस्स साहिय सहस्सचुलमीइवासाणि ॥२६४ । सेसाण मुहत्तंतो, लहू गुरू सम्ममीसमोहाणं । (गीतिः) . अहियदुतीसुदहिसयं, अहियणरगुरुट्टिई जगउम्स ।।२६५।। जेट्टो तिरियाउमणय दुगउच्चाणं असंखपरि अट्टा । पल्लासंखियभागो, आहारगसत्तगम्स भवे ॥६६॥ ' विउवेमारसगस्स य, हवेज अहियतसजेटकाठिई । तित्थस्स ऊणपुव्वदु कोडि जुआ जलहितेत्तीसा ॥२६७।। अम्मत्ताअ अणाणं, साई अणंतो य साइसंतो य । दुहअस मुहुत्तंतो, लहू गुरुदहिदुतीससयं । २६८।। साइअणंतो-ऽण्णेसि, धुवसत्ताणऽस्थि साइसंतो वि । चउ आउणिरयणरसुर--दुगविक्कियसत्तगुच्चाणं ॥२६॥ अंतमुहुत्तमणू पण-रसण्ह उ खणो उ गरदुगुच्चाणं । जेट्ठो असंखलोगा, तिरियाउस्स जलही सयपुहुत्तं ।।२७०॥(गीतिः' होइ असंखपरट्टा, चउद्दसण्हं दसह सेसाणं । (गीतिः अभविअपाउग्गाणं, अणाइणंतो अणाइसंतो य ॥२७१॥ साइअणंतो तह जिण-वज्जाण णवण्ह साइसंतो वि । तुरिअस्स खणो व लहू, जेट्ठो ऊणद्धपरिअट्टो । २७२॥ . तिरिमणयाऊण सयल-णिरयसुरेसुलहू मुहुर्ततो (गीतिः सत्ताअ गुरू मासा, छोघव्वा-ऽऽहारसत्तगस्स गुरू ॥२७३।।

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