Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोरज्ञ हेमन्तप्रभा चूणि समलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ५ गयवेए अकसाये, केवलजुगलम्मि सम्मत्ते । खइआणाहारेसु, सप्पाउग्गाण मन्वेसि ।।२२१।। (उपगीतिः) कोहाईसु पुमश्च स-हस्सछगपुमा परंतु माणतिगे ।(गीतिः) इगदुतिमंजलणाणं, मणणाणम्मि अवाहिन्य अतिआऊ ॥२२२ । अण्णाण दुगे मिच्छे, जिणविउवाहारसत्तगुच्चाणं । (गीतिः) दंमणणिरयणरसुरदु-गाउणेवममणे अजिण साऊ १२२३ । विभंगम्मि दुदमण-आलजिणाहारसत्तगाणऽस्थि । (गीतिः) दुमणव्यथि समइए, छेए अदुणि हलोहमणुयाऊ ॥२२४॥ विउवव्य तिअ उं विण, परिहारे ममइअव्व विण सुहमे ।(गीतिः) आउदुगं अहखाये, सपा इग्गाण तिणव्व ॥२२५।। अजयासुहलेमासु, तिरिव्व णवरि तिरियाउतित्थाणं (गीति:) अभवे चउआउणिरय-णरसुग्दुर्गावउवसत्तगुच्चाणं ।।२२६॥ तेत्तीसघाइआउग-जिणविउवाहारसत्तगुच्चाणं । तेरसणामणरअमर-दुगाण गणियरसण्णीसु ॥२२७॥ अणतित्थाण उवसमे, मीसे अणमम्मगाणऽणाणऽण्णे । तहि दोसु सासणे य अ-सत्ता आहारमत्तगाऊणं ॥२२८। (गीतिः)
(हे.चू.) "सत्ता" इचाइचउतीसगाहा, तत्थ प्रोहओ. देसूण. द्धगाहाअ सव्वेसिमुत्तरपयडीण अडवण्णाहियसयपयडीण सत्ताध प्रसत्ताअ रा संतपयं दरिसिदं । तहा मग्गणासु उत्तरपयडीएम देसूणगाहाबारसगेण सत्त' बावीमग हाहि असत्ताप्र संत यं निरूविरं सामण्णो मिच्छाइउवसंततामण्णयरजीवाण पवेसे सवपयडीण सत्ता पाविज्जइ । केवलं तिरियणिरयाऊरण अप्पमत्ताओ

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