Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाचूर्णि-समलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ३ तिरिये पणिदियतिरिय तिगे य सासाणमीसअमणेसु । मत्ता सगवण्णाहिय-सयपयडीणऽत्थि विण तित्थं ॥१९॥ असमत्तपणिदितिरिय-मणुयपणिंदियतसेसु सव्वेसु । एगिदियविगलिंदिय-पुहवीसलिलवणकायेसु ॥२०॥ जिणणिरयसुराऊ विण, पणवण्णाहियसयस्स पयडीणं । णिरयाउं विण देवे, अडज्जकप्पाइदेवेसु ॥२.१।। आणतपहुडीसु विण दु-आऊ एगे अवेअअकसाये । सुहमाहक्खायेसु वि, एवं इहरा विणा अणदुआऊ ।।२०२॥ (गीतिः) भवणतिगम्मि विणा जिण-निरयाऊ सचतेउवाऊसु। तित्थतिआऊ विण विण, णिरयसुराऊ उरलमीसे ॥२०३।। विक्कियमीसे विण पर-तिरियाऊ अस्थि केवलदुगम्मि । साय असायणगउग--•णामणवइउच्चणीआणं ॥२०४॥ णिरयतिरिक्खाऊ विण, आहारदुगमणणाणपरिहारे । देसे ओघव्य भवे, अण्णे बिति विण णिरयाउं ॥२०५।। मीसं सम्मं तिथं, आहारगसत्तगं विणा अभदे । आइमकसायदंसण-तिगहीणा-ऽस्थि खइए सत्ता ॥२०६॥ णिरयपढमाइतिगिरय-सुरजअडकप्पविउवमीसेसु। (गीतिः) अस्थि असत्ता-ऽऽउगद्ग-दंसण आहारसत्तगजिणाणं ॥२०७॥ अणचउगसम्ममीसदु-आउगआहारसत्तगाणऽस्थि । (गीतिः) तुरिआइणारगमवण-तिगे तमतमाअ उण विण णराउं ।।२०८।। दसणविउवाहारग--सत्तगणिरयणरसुरतिगुच्चाणं। (गीतिः) तिरिये पणिदियतिरिय-तिगेणवरिजोणिणीअमिच्छृणा ॥२०॥

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