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सर्ग-बद्ध है-कुल पन्द्रह सर्ग हैं, जिन्हें सम्मदि 'सन्मति' ही कहा गया।
नायक : अभ्युदय युक्त, तपस्वी, मृगराज की तरह भय रहित सदैव ज्ञान, ध्यान और तप को जहाँ महत्त्व देता है, वहीं संघस्थ साधुओं के प्रति वात्सल्य भी रखना है। वे शक्ति प्रिय हैं, पर राष्ट्रभावना को भी सर्वोपरि मानते हुए पन्द्रह अगस्त या 26 जनवरी पर राष्ट्र के प्रति समर्पित सैनिकों के प्रति सद्भावना रखते हैं। नायक के प्रारम्भिक जीवन में जो भाव वैराग्य के थे, वही सरकारी सेवा में रहकर भी बनाए रखते हैं। ब्रह्मचर्य-व्रत अंगीकार करके भी जो चाहता वह उसे प्राप्त हो जाता है। साधक जीवन की ऊँचाइयाँ प्राप्त कर नायक तपनिष्ठ बना रहता है। साधना काल में आधे से अधिक दिन उपवास और भोजन में छाछ, अन्य कुछ भी नहीं।
इस काव्य में अलंकरण ही अलंकरण। सर्वाधिक श्लेष की बहुलता है। उपमा, रूपक, यमक, उत्प्रेक्षा, दीपक, विभावना, अनुप्रास आदि भी हैं।
रस में शान्त रस है। कई प्रसंग ऐसे हैं जिनमें करुणा भी है। देखिए एक लकड़हारे का प्रसंग जो पण्यविहीन, फिर अपार श्रद्धालु। यह दशवें सन्मति में है।
प्रायः सभी अध्ययन में सभी रस हैं। इसमें जीवन के विविध पक्ष हैं। महान चरित्र नायक यथार्थ में तपस्वी हैं। वे तपस्वियों के सम्राट हैं, क्योंकि जितने तप, तीर्थ यात्राएँ आदि की, वे सभी सम्राट कहलाने से भी अधिक हैं।
'शब्द चयन के रूप में काव्य शिष्ट है, अलंकरण युक्त है। अलंकरण में प्रश्न' जैसे
किं रण गाम-पुर-सीदय-उण्ह-खेत्तो,
तावं तवे इध मुणेति अयस्स तावो। (8/1) इसमें जीवन की समग्रता, प्रकृति-चित्रण, विभिन्न ग्राम, पुर, नगर, तीर्थक्षेत्र एवं अरण्य भी इसमें समाहित हैं। इसमें एक ही पुरुषार्थ है, वह भी मोक्ष, क्योंकि नायक और नायक के अन्य उपासक इससे पीछे नहीं। हस्तिशावक की तरह वे उनके अनुगामी हैं। वे भी एक से एक तपस्वी, अध्यात्म, सिद्धान्त एवं दर्शन के विविध सूत्रों से जुड़े हुए। एक ही समय शुद्ध प्राशुक आहार, ग्रहण करते हैं। घृत, दूध, नमक, मिर्च, मसाले भी नहीं लेते हैं। हस्त ही जिसका पात्र है, अम्बर ही जिसका ओढ़ना है, भू ही जिसका शयन है। शीत हो या उष्ण सदैव एक ही मुद्राध्यान मुद्रा। तन पर अम्बर नहीं, फिर भी शीत में कम्पन उन्हें हिला नहीं पाती, उष्णता में श्वेद बिन्दुएँ कहीं भी नहीं दिखतीं। शरीर क्षीण, कृश है, उससे यह भी ज्ञात होता है कि उन्हें भैषज की आवश्यकता ही नहीं। भैषज भी हस्तनिर्मित जड़ीबूटियों के चूर्ण, वो भी आहार के समय ही लेते हैं। कठोर-साधना सर्वगुण
ग्यारह