________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निवारक अमृतरस है और जल में भय जीतनेवाला औषध है, और जल के उत्तम गुणों से है ।" हे घोडो । तुम बेगवाले होते हो । हे गौओं, तुम बेगवाली होती हो ।
यह सूक्त हे ऋषि सिन्धुद्वीप है । देवता सोम और जल है । एक से तीसरी ऋचा तक गायत्री छंद है, और चौथी ऋचा का छंद पुरस्तात् बृहती है । यह चार ऋचा का सूक्त है ।
गौओं के रोगों का शमन, पुष्टि और प्रजनन के लिए यह सूक्त से केवल लवण वा जल अभिमंत्रित करके पिलाना । सब रोग के भैषज्य में (चिकित्साविषयक) यह सूक्त से घी का होम और पलाश, उदुम्बर आदि शान्त वृक्षों की समिधाओं का होम करना । लाभ-अलाभ, जय-पराजय, इच्छित कार्य की सिद्धिअसिद्धि जानना । यह सूक्त से खीर, इध्मका आधान ( अग्नि में डालने का समिधि), कुशका झुंड, पाठे (वनस्पति) को अभिमंत्रन करना । समसंख्या का विकास का समसंख्या आने पर सिद्धि और विषम आने पर असिद्धि हो । इससे ही संग्राम भूमि में वेदिका का परिक्षण, जय-पराजय के लिए करना ।' अर्थोत्थापन के विघ्नों को शमाने के लिए यह सूक्त से मंत्र के वर्ण के देवता मरुतो को उद्देशकर खीर का होम, घी का होम, काशवेतस (खाँसी का औषध) आदि औषधिपात्र में एक के बाद एक रखकर अभिमंत्रित करके जल में बहा देना । कुत्ते का सर (मस्तक) और बकरें का सर (मस्तक) अभिमंत्रित करके जल में डालना । मनुष्य के केश, जीर्ण जूते, बाँस के अग्रभाग में बंधना । तुष-सिल्का (छोडां) के साथ कच्चे पात्र को तीन रज्जुवाले शके में रखकर जल में डालना आदि अभिवर्षण कर्म करके अभिमंत्रित कलश के जल के साथ बहा देना या इसमें से सींचन करना । इस सूक्त में अग्निध्रीय में वसतीवरी कलश का अभिमंत्रण करने का प्रयोजन भी है । १° चौथे मंत्र में निसर्गोपचार की जल - चिकित्सा का स्पष्ट उल्लेख है । शुद्ध जल ही परम औषध है ।
यज्ञ के कर्ताओं
I
है । 'मधुना'
जैसे माताएँ और बहिनें यज्ञकार्य में सहायक बनती है, वैसे अध्वर (सोमयाग) को जप सहायक होते है । भिन्न-भिन्न अनुवादकों के अलग दिखते अनुवाद के अर्थ एक मध के साथ, मधुर स्वाद के साथ । अध्वमि: नाडी से, पय:अर्थात् पुष्टिकारक पदार्थ । सूर्य का प्रकाश जिसके उपर पडता है वैसा जल, सूर्य के किरणों का स्पर्शवाला जल । देखिए : आप: सूर्ये समाहिताः (तै. उ: १-८-१) अपोदेवी: अर्थात् दिव्यजल । आकाश में से बरसता जल, गौओं पीती है वह जल, नदी या जलाशयों का जल । यहाँ शुद्ध जल ही परम औषध है ।
सूक्त ५
हे जलो ! (जल के समान उपकारी पुरुषों) निश्चय करके सुखकारक होते हो । सो तुम हमको पराक्रम या अन्न के लिये बड़े-बड़े संग्राम वा रमण के लिये और (ईश्वर) दर्शन के लिए पुष्ट करो । ११ ( हे मनुष्यो !) जो तुम्हारा अत्यन्त सुखकारी रस है, यहाँ (संसार में) हमको उसका भागी करो, जैसे प्रीति करती हुई मातायें ।१२ (हे पुरुषार्थी मनुष्यों) उस पुरुष के लिये तुमको शीघ्र वा पूर्ण रीति से हम पहुँचावें, जिस पुरुष के ऐश्वर्य के लिये तुम अनुग्रह करते हो । हे जलो ! ( जल समान उपकारी लोगो) हमको अवश्य तुम उत्पन्न करते हो ।१३ चाहने योग्य धनों की ईश्वरी और मनुष्यों की स्वामिनी जल धाराओं (जल के समान उपकारी पुजाओं) से मैं, जीतनेवाले औषध को माँगता हूँ । १४
82
सामीप्य : पु. २५, खंड 3-४, खोस्टो २००८ -
For Private and Personal Use Only
માર્ચ, ૨૦૦૯