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कस्माद् दर्शयसि व्हेलमत्स्यास्थिपज्जरे जलोमिवत् प्रीतिम् ? बर्लिननगरभित्तिस्तु नश्येत् किन्तु द्वेधा विभक्तं हृदयं कथं शान्ति लभेत ? कस्मात् प्रज्वालयसि
त्वं दीपं समाधिस्थाने ? ___परम्परा को नया रूप देकर नया युगबोध लाना भी आधुनिकता का काम है, साथ में भारतीय कविता में अपनी पहचान बनाना भी संस्कृत कविता का ध्येय है। आनेवाला समय हि साक्षी है सफलता का ।
सन्दर्भ सामग्री संस्कृत कवियों के संग्रह. राधावल्लभ त्रिपाठी, संस्कृत साहित्य : बीसवीं शताब्दी. गुजरातनुं संस्कृत प्राकृत साहित्यमा प्रदान, कानजीभाई पटेल सन्मान समीति, पाटण, २००५ Post Independence Sanskrit Literature A Critical Survey, Patan,2005 Contribution of Gujarat to Sanskrit Literature : Dr. Manibhai Prajapati Felicitation Volume; Patana, 1998 श्रुति हर्षदेव (सं.), आधुनिक संस्कृत में अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति की कविता, २००५. डॉ. हर्षदेव माधव, संस्कृत समकालीन कविता, संस्कृत साहित्य अकादमी, १९९९ मंजुलता शर्मा और प्रमोद भारतीय, अर्वाचीन संस्कृत साहित्य दशा एवं दिशा, परिमल पब्लिकेशन, २००४
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परम्परा और आधुनिकता
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