Book Title: Samipya 2008 Vol 25 Ank 03 04
Author(s): R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तरिण्यन्ति वा मरिष्यन्तीत्यपि न जाने । यः सेतुबन्धनिर्माणकरोऽस्ति स (सुवर्ण) लंकां प्राप्नोति नूनम् । (स्पर्शलज्जाकोमला स्मृतिः पृ. ७४) 'रेडलाईट' एरिया में रहेती 'सेक्सवर्कर्स' को भी कवि की लेखिनी आकृति देती है अधुना रामः पच्चवटीं विहाय गतः । अत्र सन्ति निशाचराणां सञ्चारः (तव स्पर्शे स्पर्श, पृ. १४७) केनापि रामेण व्यक्ता, केनापि नलेन निर्वासिता केनापि दुष्यन्तेन वञ्चिता केनापि हरिश्चन्द्रेण विसष्टा... वासनायूपे बद्धा सा दूयते किन्तु न हन्यते । (भावस्थिराणि जननान्तरसौहदानि, पृ. ७१) आधुनिक कविता के लिए समग्र विश्व हि उसकी चेतना है । 'प्रणय की दो अभिव्यक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं । दोनों में नये बिम्बों से आजकी कविता में जो परिवर्तन आया है उसका खयाल आयेगा मम प्रणयः काहिरानगरशोषप्राप्ता ऊषरमृत्तिकासमा मम मनसः स्थितिरस्ति । इत्सिंगपर्यटकविषममार्गसमोऽस्ति दिवसः । ध्रुवप्रदेशे हिमखण्डेन गृहीतेव रात्रिः 'काराकोरम' इत्याख्ये घाटप्रदेशे चलतीव समयः, हिन्दुकुशपर्वतशिखरात् पारं गच्छतीव लक्ष्यते प्रतीक्षा । एक: श्वासोऽपि फुफ्फुसात् लावारसमुपस्पृश्य बहिरागच्छति । चम्बलकन्दराऽऽश्रिता अपराधयुक्ता इव वासना परम्परा और आधुनिकता 93 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164