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प्रथमोऽध्यायः दन्तोष्ठमुखपादेष पक्वजम्बूफलैः समम । विसूचिकायामुत्पन्न वर्ण दृष्ट्वा त्यजेद् बुधः॥ १९॥ विसूचिका में रोगी के दाँत, ओष्ठ, मुख और पैरों में पके हुये जामुन के समान श्यामता आजाय तो उसे देख कर विद्वान् वैद्य उस रोगी को मरणासन्न समझ कर छोड़दे । यह श्यामता एक दो अङ्गों में अथवा सब में भी आ जाती है । १६ ॥
उच्छूनतां महणतां मुखे पादे विशेषतः। दृष्ट्वा साधु परीक्ष्यैव त्यजेद् वैद्यस्तमातुरम् ॥ २० ॥ संग्रहणी, अथवा जीर्ण ज्वर यक्ष्मादिक रोगों में मुख अथवा पैरों में उच्छूनता-सूजन और चिकनाहट को देखकर अच्छी तरह उसकी परीक्षा करे। उस परीक्षा का यह प्रकार है। उस सूजन को अंगूली से दाब, यदि कुछ चिरस्थायी गड्ढा पर जाय तो उसे अरिष्ट समझै और अरिष्ट देखकर उस रोगी को छोड़ दे, यह बचेगा नहीं इस प्रकार प्रत्याख्यान कर के भी रोगी के कुटुम्बियों के अनुरोध पर “प्रत्याख्याय चरेत् क्रियाम्' इस सिद्धान्त से चिकित्सा करे ॥ २० ॥
मुखे मसृणतां पुंसां सम्यगुच्छूनतामपि ।
योषितां पादयोः पश्येत् मासृण्योच्छूनते अपि ॥ २१ ॥ पुरुष के मुख पर मसृणता-चिकनाहट को एवम्-उच्छूनता-सूजन को अच्छी तरह देखे, और स्त्री के पैरों की सूजन और चिकनाहट को देखे और उसकी मकोय आदि के लेप से एवं मकोय खिलाकर चिकित्सा करै। इस प्रकार उपचारों से स्त्री और पुरुष की मुख-चरणगत उच्छनतादि शान्त हो जाती है, यह अरिष्टाभास अरिष्टोत्पत्ति का पूर्वरूप है ॥ २१॥
द्विवारमुपचारैस्तु शाम्यत्युच्छ्रनता द्वयोः । .. तृतीयावृत्तिमायाता ध्रुवं प्राणान् व्यपोहति ॥ २२ ॥