Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 68
________________ पञ्चमोऽध्यायः ५६. जो रोगी जाग्रद् अवस्था में दाँतों से दाँतों को खाता है अर्थात् दाँतों को किर्रता है, अशान्ति से अत्यन्त रोता है, अथवा कभी हँसता है और दुःख को नहीं जानता वह रोगी मृत्युमुख प्राप्त है, उसी दिन चौबीस घंटों में मर जायगा ।। १७ ।। मुहुसेन्मुहुः दवेडेत् शय्यां पादेन ताडयेत् । करेण मृगयेत् किंचित् स जीवति दिनत्रयम् ॥ १८ ॥ जो रोगी बारंबार हँसे अर्थात् अप्रासङ्गिक कारण के बिना ही बारंबार हँसे, तथा बारंबार क्ष्वेडा - सिंहनाद करे - गर्जे, और पैरों से शय्या का ताड़न करे, अर्थात् बारंबार पैर उठाकर शय्या पर पटके और अज्ञानपूर्वक हाथ से अपनी खाटपर अथवा इधर उधर कुछ ढूँढ़े, वह तीन दिन जियेगा ॥ १८ ॥ ग्रीवा शीर्ष न वहते न पृष्ठं भारमात्मनः । न हनुः पिण्डमास्यस्थं यस्य स त्रिदिनावधिः ॥ १९ ॥ जिस रोगी की ग्रीवा शिर को न धारण कर सके, अर्थात् शिर झुका हुआ ग्रीवा टूटी सी प्रतीत हो, तथा पीठ शरीर के भार को न सम्हाल सके, अथवा हनु-मुखका अधोभाग आस्य-मुख के ऊर्ध्व भाग को धारण न कर सके, अर्थात् मुखका अधोभाग : ठोढी आदि विकृत हो जाय, वह उसी दिन या तीन दिन के मध्य में अवश्य मर जायगा । उसके जीवन की तीन दिन की अवधि है ।। १६ ।। अकस्माज्ज्वर संताप स्तृषा मूर्च्छा बलचयः । सन्धिविश्लेषणं चापि यस्य स्यात्स मुमूर्षुकः ॥ २०॥ जिसके ज्वर का संताप, प्यास, मूर्छा और बल, इनका क्षय अक स्मात् एक दम हो जाय और सन्धि विश्लेषण - हांथ पैर आदि की सन्धियाँ पृथक् २ हो जायँ वह मुमूर्षु है, उसी समय चार छ घंटों में मरेगा ।। २० ।।

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