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रोगिमृत्युविज्ञाने दुःखाद् विनिःसृति स्वप्ने समृद्धि यदि वेधते । तदेष्टसिद्धिं लभते सुखमारोग्यसंपदौ ॥५॥
यदि रोगी स्वप्न में दुःख से निकलना अथवा समृद्धि को देखता है तो इष्ट अभिमत कार्यसिद्धि को तथा सुख, आरोग्य और संपत्ति को पाता है ॥ ५॥
देवैर्वा पितृभिः स्वप्ने प्रसन्नैरभिभाषणम् । कुर्वाणो लभते सौख्यमारोग्यसुतसंपदः ॥६॥
यदि कोई मनुष्य अथवा रोगी देवताओं के साथ अथवा प्रसन्न पितरों के साथ बात-चीत करता है तो सुख, आरोग्य, सन्तान और संपत्ति को प्राप्त होता है ॥ ६ ॥
वस्त्राणां शुभ्रवर्णानां विमलस्य हृदस्य वा। स्वप्ने निरीक्षमाणोऽसौ यात्यारोग्यसुखास्पदम ॥७॥ यदि कोई रोगी स्वप्न में स्वच्छ सफेद वस्त्रों को अथवा निर्मल ह्रद जल के गर्त स्थान को देखता है तो आरोग्य सुख सम्पत्ति को पाता है ॥ ७॥
गरलं पललं मत्स्यं दर्पणं वाऽऽतपत्रकम ।
स्वप्नेऽमेध्यं च गृह्णानो लाभं नैरोग्यमाप्नुयात् ॥ ८॥ ___ कोई मनुष्य यदि स्वप्न में गरल-विष, पलल-मांस, मत्स्य-मछली एवं दर्पण, छत्र अथवा अमेध्य विष्ठा पूय आदि किसी वस्तु को ग्रहण करता है तो लाभ-धनादि लाभ को और रुग्ण मनुष्य नीरोगता को प्राप्त होता है ॥ ८॥
पुष्पाणां शुभ्रवर्णानां स्वप्ने स्यादर्शनं यदि । तदाऽऽरोग्यं विजानीयात स्वस्थः सौख्यमुपैष्यति ॥९॥