Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 98
________________ अथ दशमोऽध्यायः इदमौत्पातिकं प्रोक्तं वैद्यस्तत्साधु भावयेत् । अथ स्वप्नं शुभं वक्ष्ये येनारोग्यं प्रजायते ॥ १॥ यह औत्पातिक-उत्पात जन्य अशुभ शकुन का विचार किया, वैद्य इस औत्पातिक विचार को उत्तम प्रकार से भावना करे । अब उत्तम स्वप्न के फल को कहता हूँ, जिसके देखने से रोगी नीरोगिता को प्राप्त हो जाता है। अर्थात् सर्वथा रोगरहित स्वस्थ हो जाता है ॥ १॥ शुभदूतः सुशकुनम् आरोग्यस्यातिसूचकम् । सर्वमेव मया वक्ष्ये भिषक्सिद्धेः सुबोधकम् ॥ २ ॥ आरोग्य के सूचक उत्तम दूत के स्वरूपों को और जाते हुये वैद्य के उत्तम शकुनों को मैं कहूँगा, जो कि वैद्य की सिद्धि के बोधक हैं, अर्थात् रोगी नीरोग होगा अथवा नहीं इसके बोधक हैं ॥ २ ॥ आतुरो यदि चारोहेत् शैलप्रासादवेश्मसु । गजाश्वगोमनुष्येषु स्वप्ने सौख्यं तदा भवेत् ॥ ३ ॥ रोगी यदि स्वप्न में पहाड़, राजभवन, मकान, हाथी, घोड़ा, बैल मनुष्य के कन्धे पर चढ़े तो सुख पा कर, रोग रहित सुस्थ हो जायगा ॥३॥ सूर्याचन्द्रमसोबहनेोद्विजादियशस्विनाम् । मनुष्याणां च तरणं स्वप्ने पश्येत्सुखं वजेत् ॥ ४ ॥ यदि रोगी स्वप्न में सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, गाय-बैल, ब्राह्मण अथवा यशस्वी लोक प्रसिद्ध मनुष्यों को समुद्र-नदी-तालाब आदि किसी स्थान पर तैरते हुये देखे तो सुख और नीरोगता को प्राप्त हो॥४॥

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