Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 88
________________ सप्तमोध्यायः ७६ इदं मया साधुविभाव्य दर्शितं भिषग्वरैर्य बहुबारमीक्षितम् । स्ववंशगैश्वापि बहुत्र भावितं तदेव लोकोपकृतौ सुवर्णितम् ॥२७॥ इति श्रीमहामहोपाध्याय पं० मथुराप्रसाददीक्षितकते रोगिमृत्युविज्ञाने सप्तमोऽध्यायः । ___ इस पूर्वोक्त अरिप्ट को अच्छी तरह अनुभव करके तथा उत्तम वैद्यों से अनेक बार देखे गये और मेरे वंशजों से अनेक बार प्रत्यक्ष अनुभूत किये गये उस अरिष्ट ज्ञान को लोकोपकारार्थ मैंने यहाँ लिखा ।। २७ ॥ इति म० म० मथुराप्रसादकृत रोगिमृत्युविज्ञान का सप्तम अध्याय समाप्त ।

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