Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 91
________________ ८२ रोगिमृत्युविज्ञाने पलाल-धान का पयार, पलल-मांस, बुस-भूसा, केश-बाल, नख-नाख न इनको स्पर्श करते हुये यदि दूत आ जाय तो उसको देखकर वैद्य उसके साथ न जाय ॥८॥ लोमास्थिविप्रमुशलान् च्युतभग्ने उपानहौ । शूपं चापि स्पृशन् दूतं पश्यन् रुग्णं न च व्रजेत् ॥ ९॥ लोम-रोम, अस्थि--हड्डी, विप्र--ब्राह्मण, मुशल--मूसर जिससे धान या औषधियाँ आदि कूटते हैं वह काष्ठका हो अथवा लोह पीतल आदि का हो, तथा च्युत--गिरे हुये अथवा भग्न टूटे हुये उपानह--जूतों को, या शूर्प--सूप को वैद्य छू रहा हो, यदि ऐसे समय में रोगी का दूत आ जाय तो रोगी को असाध्य समझ कर उसके साथ नहीं जावे ॥६॥ मार्जनीलोष्ठभस्मानि तृणकाष्ठतुषानलान् । स्पृशन् दूतं विलोक्यैवा-साध्यं मत्वा न च ब्रजेत् ॥ १०॥ मार्जनी-झाड़, लोष्ठ-मट्टी का ढेला, भस्म-राव, तृण-तिनके पतावर आदि, जिससे छप्पर आदि बनाते हैं, काष्ठ लकड़ी, तुष-धान्यत्वग्-भूसी, तथा अनल अग्नि- इन पूर्वोक्त में से यदि किसी को वैद्य स्पर्श कर रहा हो ओर ऐसे समय में यदि रोगी का दूत आ जाय तो उस दूत को देख कर ही रोगी को असाध्य मानकर न जाय ॥१०॥ दूते व्रति सवैद्यः पश्येचेदशुभं क्वचिद् । असाध्यं रोगिणं बुद्ध्वा न च गच्छेत्कथंचन ॥ ११ ॥ उत्तम वैद्य रोगी के दूत को हाल कहते समय यदि कहीं पर कुछ अशुभ कार्य देखे तो रोगी को असाध्य समझ कर किसी प्रकार भी न जाय, अर्थात् द्रव्य के लालच में आकर जाने से अयश आदि होगा ॥११॥

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