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रोगिमृत्युविज्ञाने
मुनि श्री पतञ्जलि महर्षि आदि से कहा गया, चरकादिक ग्रन्थों में विभिन्न स्वरूप से वर्णन किया गया उस अरिष्ट को मैंने अपनी काव्य रचना के द्वारा दिखाया है, जिसको देखकर उत्तम वैद्य रोगी के काल निर्णय में अर्थात् बचेगा अथवा नहीं, और यदि नहीं बचेगा तो कितने दिन में मरेगा, इत्यादि कालनिर्णय में मोह भ्रम ( अन्य प्रकार के निर्णय ) को नहीं प्राप्त होता, अर्थात् इस अरिष्ट ज्ञानानुरूप उसका निर्णय सर्वथा सत्य होता है ।। १५ ।।
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इति श्री० म० म० पं० मथुराप्रसादकृत रोगिमृत्युविज्ञान का
अष्टम अध्याय समाप्त ।
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