Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 48
________________ तृतीयोऽध्यायः ३६ इन अशुभ स्वप्नों का जो मैंने बर्णन किया है, उन्हें रोगी देखकर जल्दी ही मृत्यु को प्राप्त होता है और स्वस्थ मनुष्य उक्त प्रकार के स्वप्न को देखकर उग्र-अधिक दुःख देने वाली - बीमारी को अथवा अन्य किसी प्रकार के महान् कष्ट को प्राप्त होता है, यह स्वप्न का फल आदिचिकित्सक चरक मुनि तथा अन्य आचार्यों ने वर्णन किया है, तदनुरूप मैंने भी कहा है ।। ४२ । अविनाभावसंवन्धश्छायादेहात्मनां मतः । तो देहपरित्यागे छायाप्यात्मगतिं वदेत् ॥ ४३ ॥ छाया देह आत्मा इन तीनों का अविनाभाव संबन्ध है अर्थात विना देह के छाया नहीं होती है, यह बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव है, तो विना बिम्ब के प्रतिबिम्ब नहीं होगा । बिम्ब- देह घट पट वृक्ष आदि के होने पर हीउसकी छाया होगी, इसी प्रकार देह आत्मा का भी अविनाभाव है, विना देह के आत्मा नहीं रहता है । अतएव देह से आत्मा के पृथक् होने को छाया बतायगा ।। ४३ ॥ छायायश्च मुमृषुस्खे ज्ञानं मुनिरुदैरयत् । तदेतद् योगिनां छायापरकं न त्वयोगिनाम् ॥ ४४ ॥ मरने में छाया के परिज्ञान को चरकादिक मुनि ने कहा है, परन्तु यह योगाभ्यासी युक्त योगी केवल ज्ञानी जिनको सदा भूत भविष्य वर्तमान का ज्ञान रहता है, अथवा युञ्जान योगी जिनको इच्छा करने पर तद् वस्तु का ज्ञान हो, उनकी छाया विषयक यह छाया का ज्ञान जानना, अयोगी - सर्वसाधारण योगाभ्यासरहित पुरुषों की छाया परक यह छाया ज्ञान नहीं है ॥ ४५ ॥ सलिलातपदीपेष ज्योत्स्ना मुकुरयोरपि । प्रतिबिम्बेऽल्पदीर्घत्वान् मृत्युज्ञानमुपादिशेत् ॥ ४५ ॥

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