Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 52
________________ तृतीयोऽध्यायः . ४३ यह पूर्वोक्त स्वप्न भिन्न भिन्न कार्योत्पादक भिन्न २ प्रकार के कहे और योगियों की अथवा जिनको छाया पुरुष सिद्ध है, उनकी छाया से भी यह पूर्वोक्त फल कहा है, इसको उत्तम वैद्य अच्छी तरह समझ कर स्पष्ट इस अलौकिक-लोकोत्तर जनता में श्रद्धा विश्वास उत्पन्न करने वाले फल को कहे ॥५७॥ इति श्री म० म० मथुराप्रसाद-कृत रोगिमृत्युविज्ञान के स्वप्नछाया-विचार में तृतीय अध्याय समाप्त हुआ।

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