Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 40
________________ तृतीयोऽध्यायः प्राप्त होकर प्राणों को छोड़ेगा, अर्थात् शीघ्र ही सन्निपात ज्वर से मरेगा ॥११॥ लाक्षारक्ताम्बराभं यः पश्यत्याकाशमन्तिकात् । स रक्तपित्तरोगेण म्रियते वत्सरान्तरे ॥ १२ ॥ जो मनुष्य स्वप्न में लाक्षा रङ्ग के वस्त्र के सदृश आकाश कों पास में देखता है वह वर्ष के अन्दर उसी वर्ष में रक्त-पित्त की बीमारी से मरता है॥ १२ ॥ रक्तमाल्याम्बरैर्युक्तो रक्तदेहो मुहुर्हसन् । स्त्रिया हृतश्च स्वप्ने यः स रक्तं प्राप्य सीदति ॥ १३ ॥ जो स्वप्न में लाल माला, लाल वस्रों को धारण किये हुये, लाल देह से युक्त स्त्री के साथ जाता है वह रक्त-पित्त (रक्त के वमन) को प्राप्त होकर मरता है ॥ १३ ॥ शूलाध्मानं चान्त्रकूजा दौर्बल्यं चातिमात्रया। नखरेषु च वैवण्य स गुल्मेनावसीदति ॥ १४ ॥ जो स्वप्न में, पेट का फूलना और पेट में दर्द तथा आंतों का कुडकुडाना अर्थात् आँतों में शब्द होना, अपने शरीर की अत्यन्त दुर्बलता और नखों में दूसरे प्रकार का रंग, काले पीले नीले बैंगनी रंग के नखों को देखता है, वह गुल्म रोग से मरता है ॥ १४ ॥ यः स्वप्ने कण्टकाकीणा लतां हृद्येव पश्यति । - स गुल्मरोगमासाद्य स्वदेहं मुञ्चति ध्रुवम् ॥ १५ ॥ जो मनुष्य स्वप्न में, काँटों से व्याप्त ऐसी लता को अपने हृदय पर व्याप्त अथवा हृदय में उत्पन्न अर्थात् छाती पर पैदा हुई देखता है, वह निश्चय ही गुल्म रोग को प्राप्त होकर देह को छोड़ेगा, अर्थात् मरेगा ॥१५॥

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