Book Title: Rogimrutyuvigyanam
Author(s): Mathuraprasad Dikshit
Publisher: Mathuraprasad Dikshit

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Page 21
________________ रोगिमृत्युविज्ञाने अनिमित्तं वहेद् गन्धो यस्य देहात् शुभाशुभः । वर्षस्यैवान्तरे मृत्युदं तमनुयास्यति ॥ ३२ ॥ जिसके देह से निष्कारण शुभ अथवा अशुभ, सुगन्ध अथवा दुर्गन्ध आवे उसकी एक वर्ष में मृत्यु जरूर किसी रोग से अथवा हृद्गति के बन्द हो जाने से हो जायगी ॥ ३२॥ देहाद् दिवानिशं यस्य नानापुष्पसमो वहेत् । गन्धस्त पुष्पितं विद्यात् तत्समाभ्यन्तरे मृतम् ॥ ३३ ॥ जिसके देह से अनेक फूलों के सदृश सुगन्ध दिनरात आवे उसे पुष्पित संज्ञक रोगी समझे और उसे एक वर्ष के अन्दर मरा हुआ समझे ॥ ३३ ॥ अस्नाते वाऽपि सुस्नाते निष्कारणमुपागतः। सुगन्धो यस्य देहे स्यादब्दमात्रं स जीवति ॥ ३४ ॥, विना स्नान किये हुये अथवा स्नान किये हुये जिसके देह से निष्कारण सुगन्ध आवे वह एक वर्ष मात्र जीवित रहता है ॥ ३४ ॥ चन्दनागुरुभूपद्म-सारकुंकुमसनिमः। सुगन्धो यस्य देहे स्यात् न स जीवति वत्सरम् ॥ ३५ ॥ जिसके देह से चन्दन, अगरू-धूप, गुलाब के इत्र अथवा केसर के सदृश सुगन्ध आवे वह एक वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहता है । बहुपुष्पसमो गन्धो यस्य वा कुसुमोपमः । देहादजस्रमायाति वत्सरस्तस्य जीवनम् ॥ ३६॥ जिसके देह से अनेक फूलों के सदृश अथवा एक पुष्प के सदृश सदा गन्ध आवे उसकी एक वर्ष मात्र जीवन की अवधि है ॥ ३६ ॥ विण्मूत्रकुण पैस्तुल्यो मांसशोणितसन्निभः ।। यदेहाद् गन्ध आयाति न स जीवेत्समावधिम् ॥ ३७ ॥

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