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रोगिमृत्युविज्ञाने 'पड़ने वाले चीलर ( चिलुआ ) तथा दंशक-डांस, एवं मक्खी, खटमल-खटकिरवा, मच्छड इत्यादिक दूर भागते हैं उस विरस रोगी को वैद्य छोड़ दे, अर्थात् उसे निश्चित मरणानुगत समझ कर चिकित्सा छोड़ दे, प्रायः वह छ महीना ही जियेगा ॥ ४१ ॥
अत्यर्थमधुरे काये यमदृष्टस्य देहिनः। . क्ररा संदंशवक्त्रायाः कीटाः सर्पन्ति सर्वतः ॥ ४२ ॥
अत्यन्त मधुर जिसका शरीर हो गया हो उस रोगी को यमराज से दृष्ट समझे । क्योंकि क्रूर भयंकर सँड़सी के समान जिनके मुखाग्र अर्थात बड़े मुख वाले कीड़े-चींटे उस मधुर शरीर पर चारों तरफ से दौड़ने लगते हैं ॥ ४२ ॥
सुस्नातेऽप्यातुरे दंशा निपतन्ति च मक्षिकाः। तं वैद्यो बोधयेदन्यान् त्रिमासावधिजीवनम् ॥ ४३ ॥ पूर्ण रूप से अच्छी तरह स्नान किये हुये भी जिस रोगी पर मच्छड और मक्खियाँ अत्यधिक आकर पड़ें उसे वैद्य, यह तीन महीना मात्र जियेगा इस प्रकार अन्य लोगों को बता दे ॥ ४३ ॥
सबलः शक्तिसहितो नीरोगश्चाप्यदुर्बलः । मक्षिकादिपरिक्रान्तः षण्मासानाधिकं वसेत् ॥४४॥ बल-पौरुष-युक्त अर्थात् बली और सामर्थ्यवान् तथा नीरोग एवम् अदुर्बल-हृष्टपुष्ट मनुष्य यदि मक्षिकाओं से परिक्रान्त हो तात्पर्य यह कि उसके ऊपर सर्वदिशाओं से अनिर्वचनीय संख्या में मक्षिकाएँ पड़ें तो वह छ महीना से अधिक नहीं जियेगा, स्वतः कोई न कोई बीमारी उत्पन्न होकर उसे मार देगी ॥ ४४ ॥
दुर्बलं व्याधितं दृष्ट्वा मक्षिकाकीटसंकुलम् । मासमात्रेण शमनातिथिमायातमादिशेत् ॥४५॥ यदि दुर्बल और ब्याधियुक्त बीमार पुरुष कीट-बड़े बड़े चींटा और