Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 17
________________ देवं काके भर ३५० *::: ३५१ २० orrror भार्ग में भी पृ०३३ कोटिनं०१के साथ पढ़ें ३३६ २रिक गई है वे २४१ व्यक्तिक व्यक्तिको नों से दोनों में काकी २४३ काको ३४३ पाईयों भाइयों २४३ होदि दु योंकी २५१ यताका पता चताको ३४६ शब्दों को शब्दों का २५५ महाकुलम माहाकुला प्रारम्भ प्रारम्भ में गतियों में गतिमें कतः २-दितथा तया एक दो हों एक हो दोहों २६५ कारा द्वारा इम च्याप्ति इस अन्याप्ति .. ३५२६ ईशित्व, ईशित्व-सम्पूर्णलोककी ३५२ २२ हुआ है हुआ है १ २६८ हुआ है हुआ है २ २६८ प्रभुता । वशित्वचिरा चिरत्न ३५५ १५ बनकर वनकर ५ २६८ दानोंकी दोनोंकी ममष्टिसेर ७२ उपायके उपचयके स्पष्टानित स्पष्टानिन ३६० १टिक क्षिप्यभान क्षिप्यमाण नं. में ही वर कर २८. युक्ति उक्ति ३६५ पत्पति उत्पति शास्त्रों शस्त्रों २८.' अयोध्या अयोध्य कापेहा व्यपेत्ता २८१ १२ टिक शरद उत-से शब्दसे उशरमें ३६७ न्याम्प न्याय्य ३२ दिव्यास्त्र व्यस्त्र श्रुत म्यग्दर्शनको श्रुतकेवल केवल वे केवल केवल सम्यग्दर्शनको तरह फली तरहके फलों ३७४ स्फूर्ति २६१ अव्याप्त अध्याप्ति ३७४ मूर्तिकी मूर्तिको ४ आतिरेंद्री जातिरैन्द्री ३७७ १ टि० हादि होदिह २टि० शब्दका पदका ३८० अस्त्र-शस्त्र अरःशस्त्र क्नाता बनता दिव्यास्त्र व्यस्त्रों ३८१ अन्यत् नान्यत् ३१० दुग्धरक्त रक्त श्रुति ३२१ प्रवृत्तियों प्रकृतियों ३८१ पुक्ति उक्ति आहंद महद ३६३ श्रुत मोह साह मोहका साइ २६४ सम्यक्त्वका सम्यक्तत्वका ३१५ थार्थ पृष्यक अथे पृथक १८ ही पाप ही जिन पाप उसका और उसका अन्येन मनज अन्ये न ब्रज २१७ २टि. अनन्तर अनन्तर सम्यग्दर्शनं सम्यक दर्शनं ३५७ १३ निष्यति निष्पति ३७ २३ भारनत्रिक भवनत्रिक- ३२१ ७ विशेषणों से विशेषगोंसे युस ३६६ अपर्याप्त अपर्याप्त-- ३२१ १६ करके भी करके ४०४ इन्द्रियसंयम इन्द्रियासमम ३२४८ तथा कोई दोनों में से किसी भी नहीं पाई नहीं पाई जा सकती.यदिपाई ३२८२३ पदको प्राप्त करके भी भियों भिर्वा ३३६ १टि० सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शनके ४० ५ २-सुदेश प्रादि बलानरातीन घलान रिपून यः ४१४ २ ... २८९ स्कूर्ति . ३८१ AMANAN .M १२ अत २३ সুলি दिल ...... ..

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