Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 15
________________ पंक्ति पंक्ति ३ (ट) . P ४टि . अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ घेणवस्ते घेणवस्ते स्युय ८१ वनककीर्ति कनककीर्ति ८२ के शासन शासन ४ पत्तियां पत्तियां १ . प्रयन्ति प्रयच्छन्ति ८५ भाव तत्त्वशब्दसे भाव८६ प्रकारके प्रकारसे आगम मागम है ८८ प्राज्ञाः प्राज्ञः दुर्मत मत उसके उसकी दिये उनमें दिये हैं उनमें ८ पूरबके पूर्व २ को विषयों के विषयोंकी ६० मसी ममि ६० शब्दानु शक्यानु १० जौर और लानेकी लानेके लिए लियेकि विषय विषय भी पाषाणको पाषाण १३ शरीरं शारीरं १३ चार बार बार यह है यह है कि ६५ कहा कि कहा है कि ६ वही वहीं समायान्ति संमान्ति ६७ निर्मलता निर्भयता १८ हुए तथा हुए १८० गिरघुस गिरजानेसे १०१ जानेसे और और वह १०१ सदस्थ के तटस्थ १०१ पश्चाद् पश्चात्ता १०२ तचि तद्वाचि १०२ निःशक नि:कामक्ष १०३ कि शुद्ध कि अवस्था शुद्ध अवस्था १०३ RE NEW " Fry E F / ... ... 2:२२५४२४४४४४४३५E EFFEEEE ***** * [४] अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ शाने झाते क्योंकि ये क्योंकि १८४ यरि यदि उसको १०५ आत्माका और आत्माका १०८ बन्धन अन्धनमें १११ वन्धा बन्धार १११६ तन्निमित तन्निमित्तक १५१ १ चारूपया चारुतरा १११ २टि मृपेव मुपैव ११४दि हालादि है इत्यादि उपका विषय है ११३ ७ निजतत्त्वशुद्ध निजशुद्धतत्त्व १५३ १० प्रकृतियां जीव विपाकी ११५१टि प्रकृतियां स्वभाधिक अस्वाभाविक १९६६ बना नहीं कर नहीं बना मकता सकती स्यादी मन्नी ११६ ७ दि परिषह परीषह ११६. १६ दि विशेषरूप विषयरूप १२० ७ दोपोंके दोषांकी मिथ्य मिंध्या १२२ न होगा १२४ विपाक विषाक्त १२६ विषयनि विषयानि १२६ प्रकारके प्रकारकी १२७ गुणवृद्धि गुणवृद्धिकी १२७ निन्दा निन्दाका १३० जाता जाता ३ १३० पाय पाप क्योवृद्ध पर्यावृद्ध १३१ कषाय कषाया सेवरणार्णक संवरणार्थक १३२ निन्दा निन्दा न १३२ १ १३२ ३टि० ३१३२ टिक दोनोंके यमय समय १३३ निरोग निरोगता १३४ १२ OY होगा ३ टि २९ .... d REERARE FREE १४ HR दोनों २ टि० .

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