Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 13
________________ ३) प्रशुद्ध पंक्ति कारणकी २७ और २७ पुन्यकर्मको धौक कोया है लक्ष करके एचं सर्वश बांकड़ा पोहा सिवाय पुण्यकर्मको धर्मके किया है। लक्ष्यफ.के एवं सर्वषा धाकड़ा ..... * * * * * * * * - * समके समझ एवं २ एवं ३ गिनाया गिनाया ४ ३२ है यहीकारण है। है । यहीकारण है ३२ २१ ४-देखो टिप्पणी नं. १ पृ०३३ ३२ २२ कि कि ३३ वन्धका बन्धका- ३३ २५ भगवान - अर्थत: भगवान्ने अर्थतः ३३ देवने देवने ग्रन्थतः ३३ जाता जाता। ३ सिवाय गुणधर्मों सिद्धथु शुद्धकर्म दोनों शुद्ध दोनों नित्रणा निवाईग अविरोधेन अविरोफेन गाण ३ दिक टिक टि० १४ इसके २३ २४ ३ दि स्मर्क सम्यक्त्व परिगणित विशेष सकती। ३५ गुण-धों सिद्धपु मानं त्मक सम्यक परिणत निशेष सकती ऋद्धि अन्तरगत निर्दोष हैं विषमरूप पाहिरो ...... सिद्धि ३७ यस्मादभ्युदया, मावभ्युदयः २६ पउंजई पउंजह टि० छिज्जा छिज्जा ६ टिक आदि बादि २ ३० ३ जाते हैं जाते हैं। ३ ३. ४ हैं। पुण्य हैं।अपने उपर ३०४ आया हुआ कष्ट यदि कम होजाताई नो वहां भी सुख शब्दका प्रयोग होता है। पुण्य मोबसे मोक्ष कर्मकी w २ अन्तर्गत निर्दोष हैं। विषयरूप चाहिये। ३८ .. ३--विषय-- ३८ विषय आदि उसकी श्रादि। ora उसके ३८ बहिरंगके बहिरंग ३० नपूना० . नशरपा इसलिये इसीलिये सकता ११ सकता ॥ ३१ ३- देखो टिप्पणी न १ पृ०३२ ३१ सम्मकारष्टि ज्जैसा करनेके परमावगाद रत्नत्रयों नियम है सदरष्टि ३६ जैसा ३० करनेकी ३६ परमावगाढ ३६ रत्नत्रय ४० नियम है। ४० . .... सकता. सकता २। ३२ करती करती। . ३२

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