Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 12
________________ अशुद्ध १ (टि) २५ १(ट) हुआ २७ हुआ ६१ (दि) दोषरी १० २४ दोषए दोषण स्वाध्याय करने से पहले शुद्ध करलें। पंक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ यदिष्टन्ते यदिष्ट ते २ २ (टि) प्रकृत्तियों प्रकृतियों १३ "७ इनमेंसे “७। इनमेंरी ३ १६ करतीहै करती है। १३ नझेदयुना ना तदधुना ३ ६ (टि) नहीं है नहीं है। १३ मंगलहेतुनिमित्त मंगलनिमित्तहेतु ३ १० (टि) नेता हैं नेता हैं। १३ ८र०क. ८-२०० ३ ११ (टि किया वही किया है वही १३ संक्रमण संश्रयण १ (टि) होता कि होता है कि १३ ऽत्यो ऽन्यो ४. ४ (टि) विश्वातत्त्वना विश्वतस्वानां १४ (जो कि जो कि ५ यदनन्सर यदनन्तरं १५ प्रकृतियां पुण्य प्रकृतियां भी हैं। ५ निर्मूलन- निमूल १५ जिनमें नरकायुके चलकर चलकर मिवाय चार हूआ हूआ रसणी रसणिण दोष३ १६ गुत्तीण गुती ६ सालोक यह सालोक। यह ६ यदुविद्या "यद्विद्या" २० वीतरागताका वीतरागः या १७ जिनका ज्ञान जिनका ज्ञान, निर्दोषताका मातापिताक है। यहाँ . सामन्यतया सामान्यतया १० है यद्यपि है। यद्यपि १७ मुक्तिमश्नुते मुक्तिमश्नुते १० सर्वज्ञताका सर्वशताका भी १७ अर्थकी कि अर्थकी १० हों जिस में जिस १८ सकता है३ सकता है२. ११ अविद्यमान अषिधमान- १८ परमस्थानोंकी परमस्थानों या ११ ठीक है, प्रश्न-ठीक है, १६ अन्य विशिष्ट करते करते। १६ गुणों की उत्तरनेवाले उतारनेवाले २० अध्यात्म अध्यात्म ११ २(दि) ताहके तरहके तीर्थ २० बवादि बहि वृष्टयादियहि ११३(टि) आदीसे मादि जिससे २१ अप्रसहस्री३- अष्टसहस्त्री । ३- ११ हा, हो, श्री वर्धमान श्रीवर्धमान ११ जाला३ जाता३। २५ पृथक् ११ १० (टि) जगदगुरु जगद्गुरुः २५ “मायाविषु" "मायाविषु" ११ ५३ (टि) गृहीत गृहीत- २६ शब्दका शब्दका त्यवमोसि त्वमेवासि १२ करनी हैं करनी है। २६ दीया दिया २६ म्वाभाविक है स्वाभाविक है । १२ ही है। २६ घातिक घाति संखइतन्य संखचइसध्या २६ घातिक घाति में उपयोग में जिमकाउपयोग २७ माताक ( e १२(रि) १५ (दि) २२ ५ (टि)

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