Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj
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श्रशुद्ध
अपने
पाया भी
उचित है।
होना
होता है
३६
भवित्व
है
शुद्ध
आपने
१०
पायां
४०
चित है । ४१
४१
४१ -
होना
होता है ।
६६.
भावित्व
जाय
तप
योंके
विरोध
है.
रागाता रामादीना
कीया
ला
धर्मका ४४
आस्तिक्य ४७
प्रमाणरूप
प्रमाणरूप- १७
अर्थशुद्ध
अर्थ---शुद्ध ४७ गुरुकी ફ
गुरुकें
कि अभिधेय कि आगम के अभिधेय ४७
इन
इन
४१
४९
इसके
जिस तरह
के जो
ये
अयुत
४७
४६
४६
४६
४६
४६
यह.
५१
अयुक्त
५.१
बताया
बनाया
४.१
भ्रमतान्ता प्रमत्सान्तान्यगां ५१
अन्यगां
चेष्टानुमतैः चेष्टानुमितैः ५१
४८
४८
(३) पंक्ति अशुद्ध
किया
लक्ष्य अनायतनोंका १ अनायतनोंकार (टि०८०४६ मे)
जाय ।
तप ।
यांकी
निरोध
हैं।
४६
४६
દ
२१ ५
२७ कारण
है
२८
२६
१ दि०
६०
ર
३
भाव हैं
१०
अन्तक- ६०
मात्र हैं । ४२ करने का पूर्णकरने का प्रयत्न प्रतीति करनेका प्रयत्न ४२ १७ मम्यग्दर्शनादिको सम्यदर्शनादिकी ४३ कायरता एवं ६१
६०
होजाती है कि ४३
होजाती है है किन्तु
है । किन्तु ४३
न्यत्व
न्यत्वं
४३
धमका
आस्तिक्या
३
દ
२
ક્ર્
१ (टि)
२
४
x
Y
X
१
५
பூ
१ (टि) दुष्टान्त
७
शास्त्र
७
म
३४
१०
१६
तरह
भेदा
हैं ।
ऐसे
आन्तक
२२
२. (टि)
३ (टि)
अन्तका
प्रतीत
कायरता
७
१७
१७
२० सकता
कायरताके
का
क्योंकि
उनके
कारण हैं
उपसंग
अर
प्रकरण
तीनो
शुद्ध
प्रथम
तरह
अपने
६मारी
नहीं है
उनको
तोर्थकर
२०
५२
करण
५८
निकी ५८
५८
६ ।
तरका
भेदके
हैं
ऐसे ही
आतंक
पृष्ठ
KL
५६
५६
कातरवा कातरताके ६१
दृष्टान्त
६२
शास्त्रे ६२
के
कारण
उपसर्ग
और
प्रकरण २
क्योंकि वह ६४ जनघातिकम ६४
सकता है ६४
६४
६५
६४
विचारणीय
तरह की
अपनी
चमादी
६७
तरह
७२
अधिक है आरामको
अभावको ७२
हीनादिको हीनाधिको ७२
विचारणीय प्रथम
७२
६८
तीनो से
७०
तरह विचार ७०
है
७ই
७३
७३
नहीं है ४ ७४
उनकी ७६ तीर्थ- ७७
है कि
७८
अनात्मानम् अनात्मार्थम्
5
पंकि
१२
७
११
१६
१६
१७
१६.
१६
१७
२३
२४
२६
* * * * * * * *
३
४ (टि)
१
६
१२
१६
१६
२४
૨૫
२६
२०
२२
३ १०
२६
२.६
222222
१८
२०
? (fe)
२२
送
२४
२७
१७