Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 16
________________ अशुद्ध मिध्यात्व प्रभाव विकल्प वाशब्दका प्रयोग स्थापित समय निःसारिवा अत पर्व परन्तु आधि पदार्थसे कारण गुणारखा केवली दापी शुद्ध पृष्ठ १३५ १३६ मिध्यातत्त्व प्रभाव दूसरे विरोधियों पर भी पड़ता है। विकल्पवाचक वा ३७ शब्दका प्रयोग मत्सा सम्भवस्था के बुद्धि जथा १४० आप्ततत्व १४० १४० तभ किसी भी एककेलिये किसीके भी लिये धर्मशून्य १४३ उसकी १४३ कार्यके स्थापित सभय निःसारता सफल बोला बृद्धि अथवा प्राप्ततन्त्व तत्र १४३ १४४ फिर भी १४५ भाधि १४६ भी दूर भी संभवचौरशक्य हो १४८ उन्हे पकड़ करमहादेव धर्म से शून्य उसको कार्यकी अतएव १४० कारण है गुणा केवलि वापि সা १३७ २५ १३८ २५ १३६ २ २५ RE ( पंक्ति २३ उसकी हमा पिश्चम सूर्य सूर्ये सूर्य सूर्वे सूर्ये ३० १४१ १६८ १७३ २३ २४ ५ दि० २ टि० ६ ४ E २२ २५ १ उसी तरहसे योग्य उपायके द्वारा पदार्ध में १५३ १० १५३ २७ १६० १३ १६० २. टि १६० ४ टि १६३ सम्यक्स्य रूप अमितप्रभ- अमितप्रभ १ सकलन पुनः बोला और विस्मय में पड़कर १६८ ३ उन्हें महादेव उनकी हमारी पश्चिम २० दुर्दर्श १५ १६४ ५२ १६७ २० १६७ २९ १६७ २१ ५ ) २७ k २३ १७४ १३ १७४ २६ अशुद्ध खुदनि महभद्र इस्तिने भेदी सजातीय अभ्युदयों परम्परा स्वदेश -न प्राप्ता निःशंकता युक्त तीनों से भेदात्रि कर्तम्मू अनायतन सभीके लिप्सा कारण दोष भंग दोष त निःशंकिता निरवच्छन्न निरवच्छिन्न पाखण्डी दोषः का वर्ण भग यत या स्पष्ट करना हिंस्पन्ते उससे शुद्ध सुदती सहापद्म हास्तिने दुर्धर्श भेरी कार्य कि कर्तब्तत सज्जातीयता अभ्युदयाँ परम्प'"-- सुदेश न पाख रिट दोष के निवारण मुक्त तीनों में से भेदात् त्रि कर्तव्यममू आयतन सभीकी लिप्सया करण दोष - भंग - दोष --- भंग पते यद्द स्पष्ट कराना ६ - हिंस्यन्ते इसमें जनुचित अनुचित सनंत सन्ति ये इन फर्म की कर्तव्य पृष्ठ १७६ १७८ १७६ १८१ १८२ १८३ १८७ १८६ YCL १५१ १६१ १६३ १६२ १६४ १६५ १६६ 115 १६८ १६८ २०० २०५ २०५ २०७ sav Ra २०५८ २०६ २१० २११ २१२ २१२ २१५ २२० २३५ २३७ २४० २४१ २४९ पंक्ति २४ ˆ ì ¤ ˆ ˆ « ˆ ˆ १५ २० १२ २ टि XXF १५ ४ २. टि ४ १६. २० १७ २७ टि ५ दि १६ १ ५ १५ १६ १७ १६ १६ १४ १२ ६ ३० १२ ि २१ ४ ३ २२ ७ ધ

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