Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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राजै.शा.
याद्वादम.
॥७॥
क्योंकि, ज्ञानकी मात्रा जो है वह केवलज्ञान और केवलदर्शन इन दोनोंमें समान है । कारण कि-सामान्य धर्मोंको गौण करके विशेष धर्मोसहित जो पदार्थ ज्ञानसे जाने जाते है, विशेष धर्मोकी गौणतापूर्वक सामान्य धर्मोंसहित हुए वे ही पदार्थ दर्शनसे जाने | जाते है क्योंकि, ये जीवके खभाव है। भावार्थ-विशेषको किया है गौण जिसमें और सामान्य है प्रधान जिसम, ऐसा जो
पदार्थका ग्रहण है, सो दर्शन कहलाता है। तथा जिसमें सामान्य गौण और विशेष मुख्य है, ऐसा जो पदार्थका ग्रहण करना है, | उसको ज्ञान कहते हैं ।
तथा यत एव जिनमत एवातीतदोषम् । रागादिजेतृत्वाद्धि जिनः। नचाजिनस्यातीतदोषता। तथा यत N एवाप्तमुख्यमत एवाबाध्यसिद्धान्तम् । आप्तो हि प्रत्ययित उच्यते । तत आप्तेषु मुख्यं श्रेष्ठम् । आप्तमुख्यत्वं
च प्रभोरविसंवादिवचनतया विश्वविश्वासभूमित्वात् । अत एवाबाध्यसिद्धान्तम् । न हि यथावजज्ञानावलोकितवस्तुवादी सिद्धान्तः कुनयैर्वाधितुं शक्यते । यत एव स्वयम्भुवमत एवामर्त्यपूज्यम् । पूज्यते हि देवदेवो जगत्रयविलक्षणलक्षणेन स्वयंसम्वुद्धत्वगुणेन सौधर्मेन्द्रादिभिरमत्यैरिति ।
___तथा वे भगवान् जिन है, इसीकारण दोपरहित है। जो रागादिकको जीतनेवाले है, उनको जिन कहते है। जो जिन नहीं है, वे
दोषरहित भी नहीं है । और वे श्रीमहावीरखामी आप्तोंमें मुख्य हैं, इसीकारण बाधारहित सिद्धान्तवाले है। क्योंकि जो प्रतीतिवाला N होता है, वह आप्त कहलाता है। आप्तोंमें जो मुख्य अर्थात् श्रेष्ठ हो, वह आप्तमुख्य कहा जाता है और विसंवादरहित वचनके धारक y
होनेसे भगवान् समस्त जीवोंके विश्वासके स्थान है इसी कारण आप्तमुख्य है । तथा आप्तमुख्य है, इसी कारण भगवान् बाधारहित सिद्धान्तके धारक है। क्योंकि, ज्ञानद्वारा जिस प्रकारसे स्थित पदार्थोंको देखे है, उसी प्रकारसे कहनेवाला जो सिद्धान्त है, वह अन्य कुमतावलम्बियोंसे बाधित नहीं हो सकता है। एव भगवान् स्वयंभू है, इसीलिये देवोसे पूज्य है । क्योंकि भगवान् तीन जगत्से । भिन्न लक्षणका धारक जो स्वयंसंबुद्धत्व (खयं ज्ञानको प्राप्त होनेरूप) गुण है, उससे ही सौधर्मइन्द्र आदि देवोद्वारा पूजे जाते है ॥
अत्र च श्रीवर्द्धमानमितिविशेषणतया यद्व्याख्यातं तदयोगव्यवच्छेदाभिधानप्रथमद्वात्रिंशिकाप्रथमकाव्यतृ