Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ प्रस्तावना १५ १२ ), अयोध्याबाह्ये ( ३०२-१२), पृष्टयोः ( १४२-२ ), पठिता ( ८-१४ ) यहाँ प्रयुक्त कारक विभक्तियोंके स्थानपर नियमानुसार अन्य विभक्तियाँ अपेक्षित थीं। इनके अतिरिक्त यत्र-तत्र कर्ता और क्रियामें वैषम्य, समासकी अनियमितता, द्विरुक्ति आदि भी देखे जाते हैं। अनेक शब्द ऐसे आये हैं जो उच्चारण व अर्थकी दष्टिसे संस्कृत में प्रचलित नहीं पाये जाते । कुछ प्राकृतसे आये है, और कुछ देशी है । ( शब्द-सूची अंगरेजो प्रस्तावनामें देखिए ) (8) नागराज कृत पुण्यास्रव और उसका रामचन्द्र मुमुक्षुकी कृतिसे संबन्ध नागराज कृत पुण्यास्रव (कर्णाटक कवि चरिते, १, बंगलोर, १९२४) कन्नड़ भाषाका एक चम्पू काव्य है ! नागराजने स्वयं अपना, अपने पूर्वजोंका तथा अपनी काव्य-रचनाका कुछ परिचय दिया है। वे कौशिक-गोत्रीय थे, पिताका नाम विवेक विट्टलदेव था जो 'जिनशासन-दीपक' थे और वे सेडिम्ब ( सेडम) के निवासी थे जहाँ अनेक नये 'जिन चैत्य-गह' थे । उनको माता भागीरथी, भ्राता तिप्परस और गुरु अनन्तवीर्य मुनीन्द्र थे । ग्रंथकी पुष्पिकाओंमें उन्होंने अपने को मासिवालद नागराज कहा है, एवं सरस्वती-मुखतिलक, कवि-मुख-मुकुर, उभयकविता-विलास आदि उपाधियाँ भी प्रकट की हैं। ग्रन्थके आदिमें उन्होंने वीरसेन, जिनसेन, सिंहनन्दि, गृद्धपिंछ, कोण्डकुण्ड, गुणभद्र, पूज्यपाद, समन्तभद्र, अकलंक, कुमारसेन ( सेनगणाधीश) धरसेन और अनन्तवीर्यका उल्लेख किया है। उन्होंने पम्प, बन्धुवर्म, पोन्न, रन्न, गजांकुश, गुणवर्य, नागचन्द्र आदि पूर्ववर्ती कन्नड़ कवियोंसे प्रोत्साहन पाया था। पम्प आदि कन्नड़ कवियोंके विषय उनका कथन महवपूर्ण है। (कन्नड़ अवतरण अंग्रेजी प्रस्तावनामें देखिए )। नागराजने सगरके लोगोंके हितार्थ अपने गुरु अनन्तवीर्यको आज्ञासे शक १२५३ ( ई० १३३१ ) में प्रस्तुत ग्रन्यको संस्कृतसे कन्नड़में रूपान्तर किया। उन्होंने यह भी कहा है कि उनकी कृतिको आर्यसेनने सूधारकर अधिक चित्ताकर्षक बनाया। ( मल अवतरण अंगरेजी प्रस्तावनामें देखिये। नागराजके स्वयं कथनानुसार उनकी रचनामें उन प्राचीन महापुरुषोंकी कथायें कही गयी हैं जिन्होनें गृहस्थोंके षट् कर्मों - देवपूजा, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, दान और तपका पालन करने में यश और अन्ततः मोक्ष प्राप्त किया। नागराजने अपने मौलिक संस्कृत पुण्यास्रवके कर्ताका नाम नहीं बतलाया। किन्तु जब हम नागराजके कथनको ध्यान में रखकर रामचन्द्र मुमुक्षुको कृतिसे उसका मिलान करते हैं, तब इस बातमें सन्देह नहीं रहता कि नागराजने अपना कन्नड़ पुण्यास्रव इसी संस्कृत ग्रन्थके आधारसे लिखा है। दोनोंमें कथाओंकी संख्या समान है, और उनका क्रम भी वही है। षट् कर्मों के अनुसार कथाओंका वर्गीकरण भी दोनोंमें एक-सा है । कहीं-कहीं उक्तियों में भी समानता है। दोनों में कथाओंके प्रारम्भिक पद्य, शब्द और अर्थ दोनों दृष्टिओंसे बहुत कुछ समता रखते हैं। किन्तु जहाँ रामचन्द्र मुमुक्षुका ध्येय बिना काव्य और व्याकरणादिके गुणोंकी ओर ध्यान दिये कथा-वर्णन मात्र है, वहाँ नागराज कन्नड़ भाषाके सिद्धहस्त कवि हैं। अत: उनकी रचनामें भाषा, शैली व कवित्वका विशेष सौष्ठव पाया जाता है। उन्होंने रामचन्द्र ममक्षके कुछ प्राकृत उद्धरण तो जैसे के तैसे ले लिए हैं (पृ० १०५ ), किन्तु संस्कृत अवतरणों ( पृ० ३२, ७४, आदिको बहुधा कन्नड़ पद्योंमें परिवर्तित किया है। नागराजकी रचनाको देखते हए ऐसा भी विचार उठ सकता है कि रामचन्द्र ममक्षने ही उसका आधार लिया हो, विशेषतः जबकि उन्होंने कन्नडके कुछ स्रोतोंका उपयोग किया है (पृ०६१)। किन्तु यह सम्भावना निम्न कारणोंसे ठीक नहीं जंचती। एक तो नागराजने स्पष्ट ही कहा है कि उन्होंने एक पूर्ववर्ती संस्कृत पुण्यास्रवका आधार लिया है। दूसरे रामचन्द्र ने एकाधिक स्थानोंपर अपने मूलाधारोंका निर्देश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 362