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प्रवचन-सारोद्धार
१११ द्वार :
कल्प्य-वस्त्रमूल्य
मुल्लजुयं पुण तिविहं जहन्नयं मज्झिमं च उक्कोसं । जहन्नेणऽट्ठारसगं सयसाहस्सं च उक्कोसं ॥७९७ ॥ दो साभरगा दीविच्चगा उ सो उत्तरावहो एक्को । दो उत्तरावहा पुण पाडलिपुत्तो हवइ एक्को ॥७९८ ॥ दो दक्खिणावहा वा कंचीए नेलओ स दुगुणाओ। एक्को कुसुमनगरओ तेण पमाणं इमं होइ ॥७९९ ॥
-गाथार्थसाधु के लिये कल्प्य वस्त्र-वस्त्र तीन प्रकार का है-१. जघन्य मूल्य वाला २. मध्यम मूल्य वाला और ३ उत्कृष्ट मूल्य वाला। १८ रुपया जघन्य मूल्य है। १ लाख रुपया उत्कृष्ट मूल्य है। जघन्य मूल्य और उत्कृष्ट मूल्य के मध्य की संख्या मध्यम मूल्य है ।।७९७ ॥
-विवेचनमूल्य की अपेक्षा से वस्त्र के तीन भेद हैं
(i) जघन्य-अठारह रुपये मूल्य वाला। (ii) मध्यम-जघन्य व उत्कृष्ट मूल्य की अपेक्षा मध्यम मूल्य वाला। (iii) उत्कृष्ट लाख रुपये मूल्य वाला। इन तीनों प्रकार के मूल्यवाला वस्त्र साधु को नहीं कल्पता, कम मूल्य वाला कल्पता है।
पंचकल्पबृहद्भाष्य में कहा है कि १८ रुपये से न्यून मूल्यवाला वस्त्र ही साधु को ग्रहण करना कल्पता है। इससे अधिक मूल्य वाला वस्त्र ग्रहण करना नहीं कल्पता।
प्रश्न-रुपया किसे कहते हैं ? उसका क्या प्रमाण है?
उत्तर–सौराष्ट्र के दक्षिणदिशावर्ती समुद्र में एक योजन विस्तृत जो टापू है वह द्वीप कहलाता है। उस द्वीप की मुद्रा रुपया कहलाती है। पूर्वोक्त २ रुपया
उत्तरापथ का १ साभरक (रुपया) पूर्वोक्त २ साभरक
पाटलिपुत्र का १ साभरक
अथवा दक्षिण के २ रुपये
कांची नगर का १ नेलक पूर्वोक्त २ नेलक
पाटलिपुत्र का १ रुपया • वस्त्र का मूल्य पाटलिपुत्र के रुपये से किया जाता है ॥ ७९७-७९९ ॥
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