Book Title: Pravachan Pariksha Part 01
Author(s): Dharmsagar
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Shwetambar Samstha
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सह विहारः
श्रीप्रववनपरीक्षा ४विश्रामे ॥३८९॥
ChallammURISORTAIN JATTATRIMURBAPURIATIMIMIMA NIPATIALAM
पडिलेहा कायदा होति आणुपुवीए। किं वञ्चति अ गणधरो? जो वहती सो तणं चरति|४|| संजतिगमणे गुरुगा आणादी सउणिपेसिपेल्लणया। तुच्छेणविलोभणयाआसिआवणादी भवे दोसा।।५।। तुच्छेणवि लोहिजइ भरुअच्छाहरणि निअडिसड्ढेणं । गंतनिमंतगवहणे चेतितरूढाण अखिवणा ॥६॥ एमादिकारणेहिं.ण कप्पई संजईण पडिलेहा । गंतवं गणहरेणं विहिणा जो वण्णितो पुचि ॥७॥ गुत्ता गुत्तदुवारा कुलपुत्ते सत्तमंतगंभीरे। मीतपरीसहदविते अञ्जासिजातरो भणितो ॥८॥ घडकुड्डा सकवाडा सागारिज भगिणिमातपेरंता । निप्पच्चवायजोग्गा विच्छिन्नपुरोहडावसधी॥९॥णासन्ननातिरे विहिणा परिणतवताण पडिवेसे। मज्झत्थ विकाराणं अकुऊहलभाविआणं च॥१०॥ भोई मयहरमाई बहुमयणो वित्तको कुलीणोय। परिणवया अमीरू अणभिग्गहिओ अकोहल्लो॥१२॥ बीआरे चउगुरुगा अंतोविअ तत्तिवजिअञ्चेव। ततिएवि जत्थ पुरिसा उचिंति वेसिथिआओ अ॥१२॥ जत्तो दुस्सीला खलु वेसिस्थिणपुंसहहतेरिच्छा। सा तु दिसा पडिकुट्ठा पढमा बितिआचउत्थीआ||१३|| चारभडवोडमिंढा सालगतरुणाय जे अ दुस्सीला। उभामित्थीवेसि अपुमेसु अपंति तु तदट्ठी॥१४॥ हेट्टउवासणहेउं णेगागमणमि गहणउड्डाहो। वाणरमकडहंसा उगलगमुणगाति तेरिच्छा।।१५।। जइ अंतो वाघातोबहिं तासिंततिअया अणुण्णाया। सेसा णाणुण्णाया अजाण विआरभूमीओ॥१६॥ पडिलेहिअंच खित्तं संजइबग्गस्स आणणा होइ । णिकारण मग्गतो कारण पुरतो व समगंवा॥१७॥णिप्पञ्चवायसंबंधिभाविते गणधरप्पवितिततिओ। असति भए पुण सत्थेण सद्धिं कयकरणसहितो वा॥१८॥ उभयट्ठाइनिविट्ठ मा पेल्ले समणि तेण पुरतो ता । तं तु ण जुञ्जति अविणयविरुद्धममयं |च जयणाए।।१९।। इति श्रीनिशीथभाष्येऽष्टमोद्देशके,एतच्चूर्णियथा-'जे भिक्खू सगणेच्चिआए वे'न्यादि,इआणिं खेत्तसंकमणेत्ति दार, 'निग्गंथीण' दारगाहा, एरिमो संजतीगणहरो.भवति, 'पिअधम्में णामेगे णो ददधम्मे एवं चउभंगो,ततिअभंगिल्लो गणधरो।
ASHTRIANISATIHARAMISHIDHIMANI
||३८९।।

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