Book Title: Pravachan Pariksha Part 01
Author(s): Dharmsagar
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Shwetambar Samstha
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श्रीप्रवचनपरीक्षा ४विश्रामे ॥३९॥
| साध्वीमिः सह बिहारः
Hamalinimun MIRMIRAMMINISHAMATAASAHUPPORIAL
वदतो वाणी, सव देहीति याचतः । प्रहद्विगजननी, श्राग्वध्यवरयोरिव ॥१॥"संगहो वत्थादीहि उवग्गहो णाणादाहिं, गणहर|परूवणत्ति गतं,इआणि खित्तमग्गणा,पडिलेहणा इत्यर्थः,'खित्तस्स यगाहा तं पुण खेत्तं पडिलेहिअब, किं संजतीओ गच्छंति उदाहु संजया गच्छति ?, उच्यते, 'संजतीगमणे गाहा कंठा, जहा सउणीवंदे वीरल्लगो लीणो, अवंताओवि केणइ पुरिसेण सबाओऽवि अभिभूयंते, जे वा रुच्चति तं करिजति, से जधा वा अंबपेसिआति वा सूत्रापकाः, पेल्लिखजति वा पडिणीएणं, अविअ महिलाओ तुच्छाओ आहारादिलोभेणं 'तुज्छेणवि' गाहा कंठा, 'एतेहि' गाहा कंठा, आह-ता को वचति ?, उच्यते, गणधरो, जो चरति सो तणं वहति, हथिस्स चारी हत्थी चेव समत्थो वहेर्ड एगसराए, एवं तस्स भरस्स गणधरो चेव समत्थो, अहना जयहा हथिस्स अण्णे चेव महिसादिणो आणेति, एवमिहावि गणहरो दुक्खणओ होजा तो अण्णो तग्गुण एव पडिलेहओ जाति.तं पुण केरिसं| खेत्तं? 'जत्थाधि' गाथाद्वयं कंठं. 'वसही ति तत्थ वसही केरिसा ?, गुत्ता-वतिपरिखित्ता कुड्डपरिखित्ता वा, गुत्तदुवारा. सक| वाडा, 'घणकुडा' गाहा कंठा, सिजायरो कुलपुत्तो सत्तमंतो जो ण केणवि खोभिजति, गंभीरो अचवलो, उच्चारपासवणारय| णाए अंतो न किंचिवि भणंति 'ओभासण'त्ति एरिसो अजाण वसहिं ओभासिन्जति, दिण्णाए भण्णति-जइ चिंतेसि मए धूआसुण्हाओ वा जहा सारखिअचाओ, जइ पडिवजति तो उविजति, जइ अ अजाओ अन्भुवगच्छंति अण्णपरिवाडीए, 'णासण्ण'गाहा कंठा, 'भोइअ'गाथाद्वयं, सिज्जायरो एरिसो, अण्णपरिवाडीए 'विआरे'त्ति सण्णाभूमी, उस्सग्गेणं पुरोहड़े विज|माणे असतिए हिण्डंति 'वीआरबहु' गाहा, पुरोहडे विजमाणे अजइ एहिजत्ति, अणावात'गाहा चउसुवि ४,अंतोचिअति वाणीओ अब्भतरे पुरोहडे ततिअथंडिलं आवाते असंलोगं वजेत्ता जति पढमे बितिए चउत्थे वा बोसरति, जो एस ततिआ अणुण्णाया,
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||३९४॥

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