Book Title: Pravachan Pariksha Part 01
Author(s): Dharmsagar
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Shwetambar Samstha
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साच्चीमिः सह विहारः
श्रीप्रवचनपरीक्षा ४विश्रामे ॥३९३||
जाव रायहाणिसि वा सपरिक्खवंसि अबाहिरिशंसि कप्पइ निम्गंथीणं हेमंतगिम्हेसुदो मासा बथए"त्ति श्रीबृहत्कल्पसूत्रम्, एतभाष्यं यथा-एसेव कमो निअमा निग्गंथीणपि होति णायहो । जं इत्थं णाणत्तं तमहं वोच्छं समासेणं ॥१॥ निग्गंथीणं गणहर परूवणा | खित्तमग्गणा चेव । बसही विहार गच्छस्स आणणा वारए चेव ॥२॥ भत्तट्ठाए अ विही पडणीर मिक्खणिग्गमे चेव । निग्गं
थाणं मासो कम्हा तासि दुवे मासा? ॥३॥ पिअधम्मे दधम्मे संविग्गे वज उअतेअंसी। संगहुवग्महकुसलो सुत्तत्थविऊगणाधिपती |॥४॥ आरो० ॥५॥ खित्तस्स० ॥६॥ संजति० ।।७।। तुच्छेण ॥८॥ एएहि ॥९॥ जत्थाधिवती मूरो समणाणं सो अजाणइ चि| सेसं । एआरिसंमि खित्ते अजाणं होइ पडिलेहा ।।१०॥गुत्ता गुत्त०॥११॥घणकु०॥१२॥ नासन०॥१३।। भोइमहत्तरगादी बहुसयणो पिल्लओ कुलीणो आपरिणयवओ अभीरू अणभिग्गहिओ अकुतूहल्ली||१४|| कुलपुत्त सत्तमंतो भीअपरिस भद्दओ परिणओ आधम्मट्ठी
ओ (भदो) अजासेजायरो भणिओ।१५।। अणावायमसंलोगा आवाया चेव होइ संलोगा। आवायमसंलोगा आवाया चेव संलोगा॥१६॥ बीआरे॥१७॥ जत्तो दु०॥१८॥ चारभ०।१९।। हेट्ठा उवा०॥२०॥ जइ अंग॥२१।। पडिले ॥२२।। णिप्पच्च०॥२३॥ उभय०॥२४॥ इति श्रीबृहत्कल्पभाप्यम् ,एतच्चूर्णियथा-'एसेव' गाहा कंठा,निग्गंथीणं दारगाथाद्वयं,तत्थ पढमंदारं निग्गंथीणं केरिसो गणहरो ठवेअबो ?,तस्स परूवणा-'पिअधम्मे गाहा,पिअधम्मे नामेगेणो दढधम्मे चउभंगो,ततिअभंगे ठविजति,ण य सेसो,संविग्गोदवे मिओ, | भावे जो पुत्वरत्तावरनं सिलोगो,वजं-पावं तस्स भीरू ओअतेअस्सिनि, आरोह' गाथा,आरोहोणाम नातिदीहो नातिमंडलो,परिगाहोणाम नातिस्थूलो नातितणुओ, अहवा आरोहो उच्चत्तं परिणाहो वाहणं विक्खंभो, समचउरंससंठाणमित्यर्थः,चितमांसो नाम णो पंसुलिआदीणि दीसंति, अणोतप्पता-देहेनि ओतप्पता निस्तेजन्वात्परिभूतत्वं अणोतप्पता नेजोयुक्तत्वादपरिभूतत्वं, "देहीति
||३९३॥

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