Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीयशोदेचीये प्रत्या ख्यान स्वरूपे ॥ ५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्थुग्गयम्मि सूरे सूरुदयाओ समारभेऊण | नवकारस्सहियं जे पच्चक्वाइत्ति गिण्हेइ || ५० ॥ कह चडविहंपि न पुणो एगविहं चैव दुविहमेवऽहवा । तिविहं चेवाहारं अन्भवहारं समासज्ज ॥ ५१ ॥ अहव नवकारसहियं पच्चक्खड़ तत्थ चउहमाहारं । वोसिरइ वज्जेई इय संबंधो मुणेयव्वो ॥ ५२ ॥ एवं किर पाएणं चडविहाहारगोयरं चैव । रयणी भोयणविरमणतीरणपायंतिकाऊ ||१३|| असणं पाणं इच्चाइणा उ आहा यनिद्देसं । वयभंगदोसवज्जणहेउं चाऽऽगारदुगमाह ॥ ५४ ॥ आभोगो उबओगो तस्साभावे भवे अणाभो अच्चतं विम्हरणं पच्चक्खाणस्स जं भणियं ||२५|| अन्नत्थ अणाभोगा णाभोगं मोतु चयइ आहार । पंच तुझ्या सहसाकारेवि एमेव ।। ५६ ।। सो पुण इह विन्नेओ पवत्तजोगानियत्तणसरूवो । जम्मी सुमरंतस्सवि शक्ति मुंहे किंपि पविसेज्जा ॥ ५७ ॥ एवमणा भोगेणं भुजतस्सवि हवेज्ज मा भंगो । सहसाकारेण वा मुहं पविद्वे चे आहारे ।। ५८ ।। तो आगारा भणिया अववाया कारणाणि छिड्डीओ । इय बहुविहपज्जाया दो चैव य ए सुत्तमि ॥५९ ॥ एतो असणाईयं वोच्छामि चउव्विपि आहारं । सुत्ताणुसारओ खलु तस्स विवक्खं चणाहा || ६० || आहारजाइओ एस एत्थ एकोऽवि दंसिओ चउहा। असणाइजाइभेया सुहावबोहाइजणणत्थं ॥ ६१ नाणं सदहणं गहणपालणा विरइवुड्डि चैवंति । होइ इहरा उ मोहा विवज्जओ भणियभावाणं ।। ६२ ।। असणं ओयणसत्तुगमुग्गजगाराइ खज्जगविही य । खीराइ सूरणाई मंडगपाभिई य विज्ञेयं ॥ ६३ ॥ इत्यशनं । पाण सोवीरजवोदगार चित्तं सुराइयं चेव । आउक्काओ सब्बो संगरकइराइनीरं च ॥ ६४ ॥ खज्जूरदक्खदाडिम For Private and Personal Use Only सूत्रविचारे नमस्कार सहितं 114 11

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