Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 4 जलमए जलगए, अणलानिल तणवणस्सइगणे, निस्सिएय तम्मय, तज्जिए चेव तदाहारे तप्परिणत बण-गंध-रस-पास बोंदिरूवे, अचक्खूसे चक्खूसेय, तमकाइए, असंखेथाबरकाइएय,सुहुन,बायरं,पत्तेय सरीर नाम, साधारणेय,अणतेहणति.अविजाणओय परिजाणतोय जीवे // 5 // इमेहि विविहेहि कारणेहि // किं ते-करिसण, पोक्खरणी, वावी. वप्पिण, कूत्र, सर, तलाग, चिति, चेतिय, खातिय, आराम, विहार, धुंभ, पागार, 418+दशमाङ्ग प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रथम आश्रद्वार 420 हिमा नामक प्रथम अध्ययन बताते हैं-पृथ्वी काया के जीव तथा पृथ्वी काया की निश्राय में रहे हवे जीव, पानी के जीव तथा पानी की नेश्राय में रहे हुवे अन्य जीव, अग्नि जीव तथा अनिकाया की नेश्राय में रहे हुवे अन्य जीव, में वायु जीव, वायु की नेश्राय के जीव, वनस्पति जीव और वनस्पति की नेश्राय के जीव, उन के ही शरीरमय, उन ही से उत्पन्न हुवे, उनका ही आहार करनेवाले,उनका ही परिणामकाले, वर्ण,मंघ,रस और से उनके शरीर रूप, दृष्टि गोचर में नहीं आवे वैसे और दृष्टि गोचरमें आरे वैसे त्रसकाया, असंख्यात थार काया, बादर प्रत्येक शरीरी, और साधारण शरीरी को कितनेक जानकर मारते हैं और कितनेक बिना जान से भी मारते हैं. ॥५॥अब पृथ्वीकाया के आरंभका कारन बताते हैं. कृषि (खेती)आदि के लिये सरबावडी, कुवा, सरोवर, तलाव, मिति, चित्ता, वेदिका, अराम, स्थुभिका, प्राकार. द्वार, गोपुर, अहालक,