Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रद
प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन इसके साथ ही संघवी जी ने उमास्वाति को श्वेताम्बर परम्परा का सिद्ध करने के लिए जिन युक्तियों को प्रस्तुत किया है, वे उन्हीं के शब्दों में निम्न प्रकार हैं:
(क) प्रशस्ति में उल्लिखित उच्च नागर शाखा श्वेताम्बर पट्टावली में मिलती है।
(ख) अमुक विषय संबंधी मतभेद या विरोध बतलाते हुए भी कोई ऐसे प्राचीन या अर्वाचीन श्वेताम्बर आचार्य नहीं हुए हैं जिन्होंने दिगम्बर आचार्यों की भांति भाष्य को अमान्य कहा है।
(ग) जिसे उमास्वाति की कृति मानने में संदेह का अवकाश नहीं, इस प्रशमरति प्रकरण ग्रन्थ में मुनि के वस्त्र-पात्र का व्यवस्थित निरूपण है, जिसे श्वेताम्बर परम्परा निर्विवाद रुप से स्वीकार करती है।
(घ) उमास्वाति के वाचक वंश का उल्लेख और उसी वंश में होनेवाले अन्य आचार्यों का वर्णन श्वेताम्बर पट्टावलियों, पन्नवणा और नन्दी की स्थविरावली में मिलता है। पंडित कैलाशचन्द्र शास्त्री संघवी के उपर्युक्त तकों से सहमत नहीं हैं। उनका कथन है कि सूत्रों में वे कोई ऐसे सबल प्रमाण उपस्थित नहीं कर सके जिनसे इसके रचयिता श्वेताम्बर परम्परा का ही सिद्ध हैं। प्रस्तुत सूत्रों में कई ऐसी बातें हैं जो श्वेताम्बर परम्परा के प्रतिकूल और दिगम्बर परम्परा के अनुकूल हैं। 10 ___ वस्तुतः दोनों सम्प्रदायों ने उमास्वाति को अपने अपने सम्प्रदाय में होने के लिए जो तर्क दिए हैं, उनसे यह कहना कठिन हैं कि ये दिगम्बर हैं या श्वेताम्बर । तत्वार्थसूत्र में वर्णित कुछ बातें ऐसी हैं जो एक के प्रतिकूल है तो दूसरे के अनुकूल। अंततः यह कहना असंगत न होगा कि उमास्वाति न तो दिगम्बर हैं और न श्वेताम्बर ही । इन्हें इन दोनों परम्पराओं से भिन्न किसी तीसरी परम्परा का होना चाहिए। अतः अत्यधिक संभावना है कि वे यापनीय सम्प्रदाय के हों, क्योंकि यापनीय सम्प्रदाय में मान्य सिद्धांत तत्वार्थसूत्र में प्रतिपादित सिद्धान्तों से मिलते जुलते हैं। जन्म-स्थान एवं पारिवारिक परिचय :
उमास्वाति का जन्म कब, कहाँ और किस वंश में हुआ इसका यहां पर विचार करना भी आवश्यक प्रतीत होता है। तत्वार्थसूत्र की प्रशस्ति में उनके जन्म स्थान के रुप में न्यग्रोधिका नामक ग्राम का निर्देश मिलता है। यह स्थान कहाँ है, इसके संबंध में अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। लेकिन प्रशस्ति में ही तत्वार्थसूत्र के रचना-स्थान के रुप में कुसुमपुर का निर्देश है। विद्वानों ने बिहार में स्थित आधुनिक पटना को ही कुसुमपुर माना है। इससे प्रतीत होता है कि मगध देश के अन्तर्गत या इसके समीप ही न्यग्रोधिका नामक स्थान रहा होगा। उपर्युक्त प्रशस्ति में इनके पिता का नाम स्वाति और माता का नाम वात्सी बतलाया गया है। ये उच्च नागर शाखा के हैं तथा इनका गोत्र कोभिषनि है। श्वेताम्बरों में ऐसी भी मान्यता दिखलाई देती है कि प्रज्ञापनासूत्र के रचयिता श्यामाचार्य के गुरु हारिनगोत्रीय