Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 86
________________ 77 तीसरा अध्याय सामायिक शिक्षाव्रत : श्रावक का नवाँ व्रत सामायिक शिक्षाव्रत है। इस व्रत में मुनिव्रत के अभ्यास की शिक्षा मिलती है। प्रशमरति प्रकरण में सामायिक शिक्षाव्रत के स्वरुप का कथन किया गया है और बतलाया गया है कि प्रतिक्रमण को अथवा मन, वचन, काय से सावध प्रवृत्ति त्याग करने को सामायिक शिक्षाव्रत कहते हैं। प्रातःकाल, मध्याह्न काल एवं सायंकाल कम से कम दो घड़ी तक समता भाव रखते हुए श्रावकों को सामायिक करना अभीष्ट है 1521 प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत : श्रावक का दसवाँ व्रत प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत है। यह मूल गुणों में वृद्धि करता है। इसके स्वरुप का कथन कर बतलाया गया है कि प्रत्येक अष्टमी और चतुदर्शी को धारण और पारणा के दिन को एकासन के साथ उपवास करना प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत है। अष्टमी, पूर्णमासी आदि के दिन के आहार आदि को प्रोषथ कहते हैं। इसके चार भेद हैं - आहार का त्याग, शरीर के संस्कार का त्याग, ब्रहमचर्य धारण और पापयुक्त व्यापार का त्याग 153 । यह व्रत श्रावक के लिए आचरणीय है। भोगोपभोग परिणाम शिक्षाव्रत : श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत भोगोपभोग परिमाण शिक्षाव्रत है। भोग और उपभोग में आनेवाली वस्तुओ की संख्यो निश्चित करना भोगोपभोग परिमाण है। पुष्प, धूप, स्नान, अंगराग आदि जिन वस्तुओं को एकबार ही भोगा जाय, उन्हें भोग कहा गया है। और वस्त्र, शय्या आदि जो वस्तुएँ बार-बार भोगने में आती हैं, उन्हें उपभोग कहा गया है तथा उनके परिमाण करने को भागोपभोग परिमाण व्रत कहा गया है। परिमाण दो प्रकार के बतलाये गये हैं - (1) एक भोजन की अपेक्षा और (2) दूसरा कार्य की अपेक्षा से । भोजन, पान, खाद्य, स्वाद्य आदि का परिमाण करना तथा मद्य, मांसमधु, अनन्तकाय आदि का त्यागना भोजन की अपेक्षा से परिमाण करना है तथा आग, वन, गाड़ी-घोड़ा आदि पन्द्रह प्रकार के स्वकर्मों से आजीविका का त्याग करना कर्म की अपेक्षा से परिमाण करना है। इनका परिमाण यम और नियम दोनों रुपों से होता है। और सेव्य वस्तुओं का त्याग तो यमरुप ही होता है और सेव्य वस्तुओं का त्याग यम तथा नियम दोनों रुप होता हैं जीवन पर्यंत के लिए त्याग करना यम है। और समय की मर्यादा के साथ त्याग करना नियम है 154। यह श्रावक के लिए पालन करने योग्य है। (12 ) अतिथि संविभाग : श्रावक का बारहवाँ व्रत अतिथि संविभाग शिक्षाव्रत है। प्रशमरति प्रकरण में इसके स्वरुप का कथन किया गया है और बतलाया गया है कि अतिथि-योग्य पात्र के लिए चार प्रकार

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