Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 107
________________ सन्दर्भ-सूची) 1. सकषायत्वाजीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलान् आदत्ते स बन्धः। ... 2. कर्मसन्ततिबंध ........... कर्मोपादानमात्मन इत्यर्यः। वही, 14, का० 221, पृ० 155 3. प्रकृतिरियमनेक विथा ........... बंधोदय विशेषः। वही, 4, का० 36, पृ० 28 4. ज्ञानावरणस्योत्तर प्रकृति भेदाः............द्विचत्वारिंशद, भवन्ति। प्रशमरति प्रकरण, 3 का० 35 की टीका, पृ० 27 5. वही, 4, का0 36, पृ० 28 6. तत्र स्थिति बंथो ज्ञानदर्शनावरण वेदान्तरायाणां ............ शेष कर्मणामतमुहूर्त स्थितिः। वही, 4, का० 36 की टीका, पृ० 28 7. अनुभाग बंधोविपाकाख्यः। ............. विपच्चमानोयनुभूयते। वही, 4, का० 36 की टीका, पृ० 28 8. अनुभवनं कषाय व शात्। स्थितिपाक विशेषस्तस्य भवति लेश्या विशेषणा। वही, 4, का० 37, पृ० 29 9. प्रदेश बन्थस्तु........... शेष कर्मणामपीति। वही, 4, का० 36 को टीका, पृ० 28 10. कष्यन्तऽस्मिन जीवा इति कषः संसारः सत्य आया उपादान कारणानि इति कषायः। वही, 1, का० 17 की टीका, पृ० 15 11. (क) ममकाराहंकारावेषां मूलं पद द्वयं भवति। राग द्वेषावित्यापि तस्मैवान्यस्तु पर्यायः। प्रशमरति प्रकरण, 2, का० 31, पृ० 24 12. मायालोभकषाय .............. समासनिर्दिष्टः। वही, 2, का० 32, पृ० 25 13. इच्छा-मूर्छा............ रागपर्यायवचनानि। वही, 1, का० 18 , पृ० 15 14. इच्छा-प्रीतिः .......... स रागः। वही, 1, का० 18 की टीका, पृ० 16 15. ईर्ष्या रोषो .......... द्वेषस्यर्यायाः। प्रशमरति प्रकरण, 1, का० 19 पृ० 17

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