Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 126
________________ 117 षष्टम अध्याय साधक अपने चरमलक्ष्य मोक्ष को प्राप्तकर जन्म-मरण के चक्कर से सदा के लिए मुक्त हो सकता है। उक्त विश्लेषण के आधार पर निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि आचार्य उमास्वाति जैन-सिद्धान्त-गगन के देदीप्यमानं सूर्य हैं। और प्रशमरति प्रकरण उनकी अद्भुत एवं अनुपम कृति है जो वैराग्य मार्गियों के लिए पथ प्रदर्शक है। अतः वैराग्य विषयक यह ग्रन्थ मुमुक्षुओं के लिए उपादेय होने के कारण आचरणीय है ।

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