Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
106.
प्रशमरति प्रकरण के टीकाकार आचार्य हरिभद्र ने त्रिरत्न को समझाने के लिए दृष्टांत का प्रयोग किया है और बतलाया है कि जिस प्रकार केवल हरे या बहेड़ा या आँवला से त्रिफला नामक औषध तैयार नहीं हो सकती है, उसी प्रकार केवल सम्यग्दर्शन या सम्यग्दर्शन
मोक्ष - हेतु त्रिरत्न की प्राप्ति संभव नहीं है। जैसे हरे, बहेड़ा और आँवला के मेल से त्रिफला बनता है तो वह रोगों का उन्मूलन करता है, वैसे ही ये तीनों परस्पर में एक दूसरे की अपेक्षा रखकर मोक्ष का साधन करते हैं। इन तीनों के मिले हुए रहने पर ही संसार रुपी रोगों से मुक्ति संभव है। अतः सम्यग्दर्शन - ज्ञान- चारित्र समष्टि रुप रत्नत्रय मोक्ष के परमहेतु हैं12 |
त्रिरत्न के स्वरुप :
प्रशमरति प्रकरण में त्रिरत्न का विस्तार पूर्वक कथन किया गया है तथा इसके स्वरुप पर प्रकाश डाला गया है। इसमें मोक्ष का हेतु त्रिरत्न के स्वरुप का जो कथन किया गया है, निम्न प्रकार हैः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र - ये त्रिरत्न है। इनका क्रमशः उल्लेख इस प्रकार है:
सम्यग्दर्शन :
प्रशमरति प्रकरण में सम्यग्दर्शन की परिभाषा दी गयी है और बतलाया गया है कि जो पदार्थ जिस स्वभाववाला है, उसका उसी स्वभाव रुप से निश्चय होना तत्वार्थ है और इसमें श्रद्वान् करना सम्यग्दर्शन है।
सम्यग्दर्शन दो प्रकार से उत्पन्न होता है - (क) निसर्गज और (ख) अधिगमज 13
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(क) निसर्गज सम्यग्दर्शन :
परिणाम, निसर्ग और स्वभाव - ये तीनो एकार्थवाची हैं। प्रशमरति प्रकरण में निसर्गज सम्यग्दर्शन के स्वरूप का कथन करते हुए बतलाया गया है कि जो पर उपदेश के बिना स्वभान से ही सम्यक्त्व उत्पन्न होता है, वह निसर्गज सम्यक्दर्शन कहलाता है ।
(ख) अधिगम सम्यग्दर्शन :
शिक्षा, आगम और उपदेश श्रवण- ये अधिगम के समानार्थी हैं। ग्रन्थकार ने इनके स्वरुप का वर्णन कर यह बतलाया है कि जो अगम, गुरुपदेश श्रवण से सम्यकत्व उत्पन्न होता है, वह अधिगम सम्यग्दर्शन है 1
सम्यग्ज्ञान :
सम्यग्ज्ञान मोक्ष का हेतु है । सम्यग्ज्ञान का अर्थ यथार्थ ज्ञान है। प्रशमरति प्रकरण में सम्यग्ज्ञान के स्वरुप का कथन कर बतलाया गया है कि जो स्व और पर को यथार्थ रूप से