Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 121
________________ सन्दर्भ-सूची) 1. कात्स्यैन बन्ध वियोगो मोक्षः। द्वाविंशत्युत्तरेडपि प्रकृतिशते निःशषतः क्षीणे मोक्षो भवति। - प्रशमरति प्रकरण, 14, का 221 एवं उसकी टीका, पृ० 155 2. सादिकमनन्तमनुपमम व्याबाथ सुखमुत्तमं प्राप्तः। केवल सम्यक्त्वज्ञानदर्शनात्मा भवति मुक्तः । प्रशमरति प्रकरण, 21, का० 289, पृ० 199 3. डॉ० लाल चन्द जैनः जैनदर्शन में आत्म विचार, पृ० 266-68 4. केषांजिद भावमात्रं मोक्षस्तन्निराकरणाया। वही, 21, का० 290, पृ० 200 5. मुक्तः सन्नाभावः स्वालक्षण्यात् स्वतोऽर्थसिद्धेश्च। भावान्तर संक्रान्तेः सर्वज्ञाज्ञोंपदेशाच्च। वही, 21, का० 290, पृ० 200 6. प्रशमरति प्रकरण, 20, का० 281, पृ० 194 7. यतो गुरुद्रव्यमथो गच्छद् दृष्टं पाषाणादि, तस्य गौरवं............... ...... यत्सर्वकर्म विनिमुक्तोऽत्यन्त लघुरघो गमिष्यति। वही, 21, का० 292 की टीका, पृ० 202 8. ईषन्यनाग हस्यानागमक्षराणां ......... तावत्प्रमाणां शैलशी मेति। वही, 21, का० 283 __. की टीका, पृ० 196 9. योगामनोवाक्कालक्षणा ....... गच्छत्यूर्ध्वगेव सिद्धः। प्रशमरति प्रकरण, 21, का० 293, पृ० 202 10. (क) पूर्व प्रयोग सिद्धेर्बन्थच्छेदाद संग भावाच्च। गति परिणामाच्च तथा सिद्धस्योर्ध्वगतिः सिद्धा। वही, 21, का० 294, पृ० 203 (ख) वही, 21, का 294 की टीका, पृ० 203 11. (क) लोकान्तादपि न परं प्लवक इवोपग्रहाभावात्। (ख) सिद्धस्योर्ध्वं मुक्तस्या लोकान्ताद् गति भवति। प्रशमरति प्रकरण, 21, का० 292-293, पृ० 202

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