Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन तथा कोष को द्वेष माना गया है 12 ।
राग-पर्याय :
प्रशमरति प्रकरण में राग के पर्याय का कथन किया गया है तथा बतलाया गया है कि इच्छा, मूळ, काम, स्नेह, गावं, ममत्व, अभिनन्दन, अभिलाषा इत्यादि राग के अनेक पर्याय हैं 1 । सुन्दर स्त्री आदि में जो प्रीति होती है, उसे इच्छा कहते हैं। बाह्य वस्तुओं के साथ एकमेक होने रुप जो परिणाम होता है, उसे मूर्छा कहते हैं। इष्ट वस्तु की अभिलाषा को काम कहते हैं। विशिष्ट प्रेम आदि को स्नेह कहते हैं। अप्राप्त वस्तु की इच्छा करने को गाट र्व कहते हैं। यह वस्तु मेरी है, इसका मै स्वामी हूँ, ऐसे मन के भाव को ममत्व कहते हैं। इष्ट वस्तु के मिलने पर जो सन्तोष होता है, उसे अभिनन्दन कहते हैं। इष्ट वस्तु की प्राप्ति के लिए जो मनोरथ है, उसे अभिलाषा कहते हैं 14 । द्वेष-पर्याय :
प्रशमरति प्रकरण में द्वेष के पर्यायों का उल्लेख किया गया है तथा बतलाया गया है कि ईर्ष्या, रोष, दोष, द्वेष, परिवाद, मत्सर, असूया, वैर और प्रचण्ड आदि द्वेष के अनेक पर्याय है 15 । प्रशमरति प्रकरण के टीकाकार ने ईष्या आदि द्वेष के पर्यायों को परिभाषित किया है। उनके अनुसार दूसरों की सम्पत्ति आदि को देखकर मन में ऐसा भाव होता है कि उसकी यह सम्पत्ति नष्ट हो जाये, मेरे पास ही सम्पत्ति रहे, अन्य किसी के पास न रहे, इस भाव को ईर्ष्या कहते हैं। दूसरे का सौभाग्य, रुप और लोकप्रियता आदि को देखकर जो क्रोध उत्पन्न होता है, उसे रोष कहते हैं। जो दूषित करे, वह दोष है। प्रीति के न होने को द्वेष कहते हैं। दूसरे के दोषों का कहना परिवाद है। जो अपने को सच्चे धर्म से अलग १. वह मत्सर है। दूसरों के गुणों को न सह सकना असूया है। आपस में मार-पीट होने से उत्पन्न हुए क्रोथ से जो भाव पैदा होता है, वह वैर है। अत्यन्त तीव्र गुस्से को अर्थात् शान्त हुई कोपाग्नि को भड़काना प्रचण्ड है 16। ___उक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि कषाय के कुल चार भेद हैं- क्रोध, मान, माया
और लाभ। ये चारों अत्यंत दुर्जेय हैं 17 । इनका विस्तार से वर्णन प्रशमरति प्रकरण में इस प्रकार किया गया है :
कोष कषाय :
मोह कर्म के उदय से उत्पन्न हुए आत्मा के कोथ करने रुप परिणाम को क्रोध कषाय कहते हैं 18 । क्रोध प्रीति नाशक, परितापक, भयावह, वैर-उत्पादक एवं मोक्ष का घातक है। यह इहलोक एवं परलोक दोनों में हानिकारक है 20 ।