Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 84
________________ 15 तीसरा अध्याय कि जो गृहस्थ अणुव्रत, गुणव्रत एवं शिक्षाव्रत का सम्यक् पालन करता है, उसे श्रावक या अगारी कहा गया है। अर्थात् श्रावक के लिए पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत एवं चार शिक्षाव्रत-कुल बारह व्रत होते हैं। जो इनका समयक् पालन करता है, वही अगारी कहलाता है 143 । प्रशमरति प्रकरण में वर्णित श्रावक के बारह व्रत निम्न प्रकार हैं। अहिंसाणुव्रत : श्रावक का प्रथम व्रत अहिंसाणुव्रत है। अहिंसाणुव्रत के स्वरुप का कथन करते हुए बतलाया गया है कि स्थूल हिंसा का त्याग करना, अहिंसाणुव्रत है। श्रावक बादर जीव की हिंसा नहीं करता परन्तु पृथ्वीकाय आदि सूक्ष्म जीव की हिंसा का त्याग भी नहीं करता है। इस प्रकार हिंसा के दो भेद हैं - (1) संकल्पी (2) आरंभी। मै इसे मारूँगा, ऐसा हृदय मे संकल्प करके जो किसी भी प्राणी का वध किया जाता है, वह संकल्पी हिंसा है और आरंभ करने से जो हिंसा होती है, वह आरंभी हिंसा है। श्रावक संकल्पी हिंसा का त्याग करता है, आरंभी का नहीं, क्योंकि आरंभ किये बिना उसका जीवन-व्यापार नहीं चल सकता । अतः स्थूल अर्थात् संकल्पी हिंसा का त्याग पहला अहिंसाणुव्रत है 144 1 . सत्याणुव्रत : श्रावक का दूसरा व्रत सत्याणुव्रत है। प्रशमरति प्रकरण में सत्याणुव्रत के स्वरुप पर विचार किया गया है और बतलाया गया है कि स्थूल झूठ का त्याग करना सत्याणुव्रत है। जो वस्तु जैसी है, उसे वैसी न बतलाकर अन्यथा भाषण किया जाता है, श्रावक उसका त्याग नहीं करता है 1451 अचौर्याणुव्रत : श्रावक का तीसरा व्रत अचौर्याणुव्रत है। प्रशमरति प्रकरण मे अचौर्याणुव्रत के स्वरुप का कथन किया गया है और बतलाया गया है कि स्थूल चोरी का त्याग करना, अचौर्याणुव्रत है। अर्थात् चौर्य पाप के एक देश त्याग, अचौर्याणुव्रत है। बिना दी हुई वस्तु के ग्रहण करने को चौर्य कहा गया है। जिसके ग्रहण करने से मनुष्य चोर कहलाता है, वह स्थूल चोरी है जो त्याज्य है। इस प्रकार स्थूल चोरी का त्याग करना अचौर्यार्णव्रत है 146 | ब्रह्मचर्याणुव्रत : श्रावक का चौथा व्रत ब्रह्मचर्याणुव्रत है। इसके स्वरुप का कथन कर बतलाया गया है कि स्थूल मैथुन का त्याग करना ब्रह्मचर्याणुव्रत है। यह दो प्रकार का है- (1) स्वदार संतोष और (2) परदार निवृत्ति। स्वदार सन्तोषव्रती के लिए परस्त्री सेवन और वेश्यागमन - दोनो ही स्थूल हैं, इसलिए वह दोनों का त्याग करता है। किन्तु परदार निवृत्ति का पालक परस्त्री

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