Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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तीसरा अध्याय संयम धर्म :
संयम धर्म उत्तम धर्म है। आसव के कारणभूत हिंसा आदि पापों से विरत होना अथवा पृथ्वीकाय आदि में संयम करना संयम धर्म है।50 आगमानुसार संयम धर्म के दो भेद हैं 51 (१) प्राणि संयम और (2) इन्द्रिय संयम। छह काय के जीवों का घात नहीं करना प्राणि संयम
और पाँच इन्द्रिय एवं मन से विरक्त होना इन्द्रिय संयम है। यह संयम समितियों का पालन करनेवाले मुनि को होता है।
प्रशमरति प्रकरण में ही संयम के सत्रह भेद बतलाये गये हैं52- हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह, विरमण, स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु, श्रोत-पंचेन्द्रिय दमन, क्रोथ -मान-माया-लोभ चार कषायजय,मन, वचन-कायगुप्ति।
त्याग धर्म : __ वथ, बन्धन आदि को त्यागना अथवा साधुओं को प्रासुक भिक्षा देना त्याग है 531 प्रशमरति प्रकरण में त्याग धर्म की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि कुटुम्ब, धन, इन्द्रिय सुख, भय, कलह, शरीर, राग-द्वेष आदि परिग्रह के त्यागने को त्याग धर्म कहा गया है और जो साधु त्याग धर्म का पालन करता है, उसे निर्ग्रन्थ कहा गया है 54 ।
सत्य धर्म : ___यह भी एक उत्तम धर्म है। सत्य की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि हितकर वचन बोलना सत्य धर्म है 55। __सत्य धर्म के चार भेद हैं। जैसा देखना वैसा ही कहना, काय, मन और वचन की अकुटिलता-ये सब सत्य धर्म जिनेन्द्र के मत में ही कहा गया है, अन्य मतों में अकथित है56। तप धर्म :
तप धर्म एक उत्तम धर्म है। तप का अर्थ तपाना है। प्रशमरति प्रकरण में तप की परिभाषा दी गयी है और बतलाया गया है कि कर्मों के क्षय करने के लिए जो तपा जाये, वह तप कहलाता है 57।
तप के दो प्रकार हैं- (1) बाह्य और (2) आभ्यन्तर तप। अनशनादि छह तप दूसरों के द्वारा देखा जाता है, इसलिए इन्हें वाह्य तप कहा जाता है, तथा प्रायश्चित आदि तपों द्वारा जो स्वयं अनुभव किया जाता है,उसे आभ्यन्तर तप कहा जाता है 58 ।
बाबकाल : ___ बाय तप के छह भेद किये गये हैं9 - अनशन, उनोदरता, वृत्ति संक्षेप, रस त्याग, कायक्लेश और संलीनता।