Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 79
________________ प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन 70 में प्रवृत्त होता है। अतः जो वैराग्य के अभिलाषी हैं, वही आकिंचन्य परम धर्म है 1041 ___ इस प्रकार दस धर्म के पालन करने से चिरकाल के संचित दुर्भेद्य, राग, द्वेष और मोह का थोड़े ही समय में उपशम हो जाता है105 तथा अहंकार और ममकार के त्याग करने से अत्यन्त दुर्जय, उद्यत और बलशाली परीषह, गौरव, कषाय, योग और इन्द्रियों के समूह भी नष्ट हो जाते हैं06 । अतः कषायादि पर विजय पाने के लिए दस धर्म का पालन करना अत्यावश्यक है। जबतक मुनि कषाय पर विजय नहीं प्राप्त करेगा, तबतक वह हिंसा आदि पाँच पापों से विरत नहीं हो सकता है और इससे विरत होने के लिए मुनियों को व्रती होना परमावश्यक है। इसलिए आगे व्रत के स्वरुपदि का कथन किया गया है। व्रत का स्वरुप: पापों से विरत होना व्रत है। आगे व्रत के स्वरुप का कथन करते हुए बतलाया गया है कि हिंसा, असत्य, अचौर्य, कुशील (मैथुन) और परिग्रह-पाँच पाप हैं। इन पापों से निवृत्त होना व्रत है। व्रत के भेद : ___ इसके दो भेद है- (1) अणुव्रत (2) महाव्रत। हिंसा आदि पाँच पापों से एक देश निवृत्ति होने को अणुव्रत और सर्वदेश निवृत्ति होने को महाव्रत कहा गया है 107 | महाव्रत : प्रशमरति प्रकरण में महाव्रत के पाँच भेद बतलाये गये हैं- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह 08 | अहिंसा : . अहिंसा प्रथान महाव्रत है। अहिंसा का अर्थ होता है - हिंसा न करना। हिंसा महापाप स्वरुप है। प्रशमरति प्रकरण में हिंसा के स्वरुप का कथन कर बतलाया गया है कि किसी भी जीव को प्रमादपूर्वक घात करना या कष्ट देना हिंसा है109। हिंसा के दो प्रकार हैं - द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा। यहाँ हिंसा का प्रमुख कारण प्रमाद का योग है, क्योंकि प्रमाद का योग रहते हुए बाह्य में हिंसा न होने पर भी हिंसा मानी जाती है और प्रमाद का योग न होने पर बाय में हिंसा होने पर भी हिंसा नहीं मानी जाती। इस प्रकार निद्रा, विषय, विकट और विकथा - पाँच प्रकारवाला प्रमाद ही हिंसा का प्रमुख कारण है।10। इस प्रकार हिंसा से सर्वदेश निवृत्ति अहिंसा महाव्रत है। अहिंसा व्रत की भावनाएँ: अहिंसा महाव्रत को स्थिर करने के लिए इसकी पाँच भावनाएँ बतलायी गईं हैं जो इस

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