Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 80
________________ 11 तीसरा अध्याय प्रकार हैं- वचन-मनोगुप्ति, ईर्या-आदान निक्षेपण समिति और आलोकितपान भोजन 111| सत्य : सत्य दूसरा महाव्रत है। असत्य से विरत होना ही सत्य व्रत है। सच्ची बातों को छिपाना, झूठी बात प्रकट करना, कडुआ, कठोर और सावध बचन बोलना असत्य है।12। असत्य का मुख्य कारण प्रमाद ही है। इसके अनेक प्रकार होते हैं। जैसे-(1) सद् को असत् कहना,यथा आत्मा नहीं है (2) असत् को सत् कहना, जैसे आत्मा व्यापक है (3) विपरीत वचन, जैसे गाय को घोड़ा कहना (4) कड़वे वजन बोलना (5) सावध वचन, जैसे इस मार्ग में हिरणों का झुण्ड गया है, ऐसा बतलाना । इस प्रकार कटुक सावध वचन भी असत्यस्वरुप है, क्योंकि इससे भी हिंसा होती है।113 अतः असत्य रुप महापाप का सर्वथा त्याग करना ही सत्य महाव्रत है। अर्थात् असत्य से सर्वथा विरत होना ही सत्य महाव्रत है। यह महाव्रत अहिंसा महाव्रत की रक्षा के लिए आवश्यक है। सत्य व्रत की भावनाएँ : ___अहिंसा महाव्रत की तरह सत्य महाव्रत की भावनाओं का पालन करना अतिआवश्यक है। इसकी भी पाँच भावनाएँ हैं - (1) अनुवीचि भाषण (2) क्रोष प्रत्याख्यान, (3) लोभ प्रत्याख्यान (4) निर्भयता और (5) हास्य प्रत्याख्यान14। इस प्रकार उक्त भावनाओं के पालन नहीं करने पर यह व्रत दूषित हो जायेगा। अस्तेय : ___ अस्तेय तीसरा महाव्रत है। इसके स्वरुप का कथन करते हुए बतलाया गया है कि स्तेय से सर्वदेश विरत होना अस्तेय है। यहाँ स्तेय पाप स्वरुप है। इसका अर्थ चौर्य है। इस प्रकार चौर्य बुद्धि से पर-धन का हरण करना स्तेय है। अर्थात् प्रमाद के योग से बिना दिये हुए पदार्थ को ग्रहण काना स्तेय या चौर्य है 115 | स्तेय का मुख्य कारण प्रमाद ही है। इस प्रकार स्तेय एवं इसके कारणों का सर्वदेश निवृत्ति होना अस्तेय महाव्रत है। अस्तेय व्रत की भावनाएँ : ___ अस्तेय महाव्रत की रक्षा के लिए पाँच भावनाओं का पालन करना आवश्यक है। इसकी पाँच भावनाएँ इस प्रकार हैं 116 - शून्यागारवास, विमोचित गृहावास, उपरोधाविधान, यथोदित भैक्ष्य शुद्धि और सधर्मा विसंवाद। अस्तेय महाव्रत पंच भावनाओं के बिना दूषित हो जाता है। अतः इन भावनाओं का सम्यक् आचरण करने पर ही यह महाव्रत स्थायी होता है। अमैथुन (ब्रह्मचर्य): अमैथुन भी महाव्रत है। इसका अर्थ होता है- मैथुन का अभाव। मैथुन के स्वरूप का

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