Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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तीसरा अध्याय उत्सर्ग आभ्यन्तर तप :
कायोत्सर्ग आदि करना व्युत्सर्ग है। इसके दो भेद हैं- (१) बाहय व्युत्सर्ग (२) आभ्यन्तर व्युसर्ग। बास व्युत्सर्ग तप :
अधिक उपकरण, भत्तपान आदि के त्यागने को बाहय व्युत्सर्ग तप कहते हैं। अर्थात् खेत आदिक बाह्य परिग्रह का त्याग बाह्य व्युत्सर्ग है। आभ्यन्तर व्युत्सर्ग तप :
मिथ्या दर्शन आदि के त्यागने को आभ्यन्तर व्युत्सर्ग कहते हैं। अर्थात् क्रोधादि परिग्रह का त्याग आभ्यन्तर व्युत्सर्ग है। स्वाध्याय आभ्यान्तर तप:
स्वाध्याय तप के पाँच भेद हैं- वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाम और धर्मोपदेश100। शब्द तथा अर्थ के पाठ को वाचना स्वाध्यायतप, सन्देह दूर करने के लिए पूछने को पृच्छना स्वाध्यायतप, आगमार्थ का मन में चिन्तन करने को अनुप्रेक्षा स्वाध्यायतप, पाठ-शुद्धतापूर्वक उच्चारण करने को आम्नाय स्वाध्याय तप, आक्षेपणी-विक्षेपणी-संवेदनी तथा निर्वेदनी कथा के कथन को धर्मोपदेश स्वाध्याय तप कहा गया है। बह्मचर्य धर्म :
ब्रह्मचर्य उत्तम धर्म है। प्रशमरति प्रकरण में इसके स्वरुप का कथन करते हुए बतलाया गया है कि मैथुन से निवृत्त होने को ब्रह्मचर्य धर्म कहा गया है 101। आशय यह है कि स्त्री से संबंध रखनेवाले शय्या आदि पदार्थ, पूर्व काल में भोगी हुई स्त्री का स्मरण तथा स्त्री संबंधी कथावार्ता सुनने के त्याग करने से ब्रह्मचर्य धर्म का पालन होता है।
ब्रह्मचर्य के अट्ठारह भेद हैं :- भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवियों के भोग-सुख से मन-वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदनापूर्वक विरत होने से नौ भेद और
औदारिक शरीर संबंधी काय भोग से विरत होने के कारण नौ भेद होते हैं। इस प्रकार ब्रह्मचर्य के अट्ठारह भेद होते हैं 102 1--...---
आकिंचन्य धर्म : - आकिंचन्य उत्तम धर्म है। प्रशमरति प्रकरण में आकिंचन्य धर्म की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि परिग्रह के अभाव अर्थात् धर्म के उपकरणों के सिवाय अन्य कुछ भी परिग्रह के न रखना अकिंचन्य धर्म है 103 | अध्यात्मज्ञानी निश्चयनय से आत्मा के मोह परिणाम को ही परिग्रह कहा गया है, क्योंकि उसके होने से मनुष्य बाह्य परिग्रह के संचय