Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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दूसरा अध्याय
द्रव्य उत्पाद-व्यय-ग्रौव्य स्वरुप है :
द्रव्य का दूसरा लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य स्वरुप होना बतलाया गया है। ऐसा कहने का तात्पर्य यह है कि द्रव्य उत्पाद-व्यय-प्रौव्य आपस में संयुक्त है यानी आपस में भिन्न नहीं हैं। द्रव्य की किसी भी क्षण ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती है, जिसमें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य परिणाम न हो ।
उत्पादादि तीनों एक ही वस्तु के अंश हैं :
उत्पाद, व्यय और धौव्य - इन तीनों से युक्त वस्तु होती है। इनसे भिन्न वस्तु या द्रव्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। ये वस्तुएं स्वतः सिद्ध है। जिस प्रकार से बीज, अंकुर
और वृक्षत्व अंश है और वृक्ष अंशी है, उसी प्रकार से द्रव्य अंशी है और उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य अंश हैं। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य ये पर्याय के आश्रित हैं और पर्याय द्रव्य से भिन्न नहीं है। इसलिए सिद्ध है कि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य आदि द्रव्य से भिन्न नहीं है ।। उत्पादादि तीनों भिन्न-भिन्न नहीं है :
उत्पाद आदि तीनों परिणाम परस्पर में अभिन्न हैं। व्यय के बिना उत्पाद और उत्पाद के बिना व्यय की कल्पना ही नहीं की जा सकती है और उत्पाद व्यय - ये दोनों ध्रौव्य के बिना सम्भव ही नहीं हैं। इसी प्रकार उत्पाद, व्यय के बिना प्रौव्य भी नही हो सकता है। इससे सिद्ध है कि उत्पादादि तीनों एक ही हैं। यहां हम अपने उस कथन का स्पष्टीकरण उदाहरण देकर करने का प्रयास करते हैं। जिस समय कुम्भकार घड़ों का निर्माण करता है उस समय घड़ों के उत्पाद के साथ ही साथ मृत पिण्ड का विनाश भी होता है। ऐसा नहीं है घड़े का उत्पाद हो गया और पिण्ड का विनाश न होता है और उस उत्पाद व्यय के समय दोनों अवस्था में मिट्टी का होना ध्रुवता है, क्योंकि द्रव्य के स्थिर हुए बिना पर्यायों की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। उपर्युक्त उदाहरण से यह सिद्ध हो जाता है कि उत्पाद आदि तीनों परस्पर में अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही हैं 7 ।.
उत्पादादि तीनों का भिन्न-भिन्न काल हो अर्थात् तीनों भिन्न-भिन्न समय में होते हैं, ऐसी बात नही है। बल्कि इनका समय एक ही है, क्योंकि मिट्टी एक ही समय में पिण्ड रुप से उत्पन्न होती है एवं विनष्ट होती है। और ध्रुवता उन दोनों में हमेशा विद्यमान रहती है, क्योंकि इस बात का उल्लेख हम पहले कर चुके हैं कि पर्याय उत्पादादि पर निर्भर है 791 अतः सिद्ध होता है कि द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य स्वरुप है। -- द्रव्य के उपर्युक्त दो लक्षणों का हमने यथासम्भव उदाहरण द्वारा विवेचन किया। द्रव्य के जो दो लक्षण बतलाये गये हैं, वे एक दूसरे से भिन्न हों ऐसी बात नहीं है। इसके कथन करने की दृष्टि से भेद दिखलाई पड़ते हैं, जो शब्दात्मक है, वास्तविक नहीं। हमने विवेचन करके यह दिखलाने का प्रयत्न किया हैं कि उपयुक्त दोनों लक्षणों में से एक लक्षण करने पर शेष