Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन स्कंधबंध के हेतु :
स्कन्थ केवल परमाणुओं के सहयोग से ही नहीं बनता है, बल्कि जब चिकने और रुखे परमाणुओं का परस्पर एकत्व होता है तब स्कन्ध बनता है अर्थात स्कन्ध की उत्पत्ति के हेतु परमाणुओं का स्निग्धत्व और रुक्षात्व है 111 |
धर्मास्तिकाय : धर्मास्तिकाय स्वरुप : ___ जैन दर्शन में मान्य छः प्रकार के द्रव्यों में धर्मास्तिकाय नामक द्रव्य की भी कल्पना है। यह द्रव्य जैन दर्शन में गति का सूचक माना गया है। इसका तात्पर्य यह है कि धर्मास्तिकाय सम्पूर्ण लोक में व्याप्त है। ऐसा कोई भी लोकाकाश का अंश नहीं है, जहाँ पर धर्मास्तिकाय न हो। धर्मास्तिकाय के गति में सहायक होने का तात्पर्य यह है कि वह गति शील द्रव्य की गति में एक मात्र निमित्त कारण है। वह किसी भी द्रव्य को गति करने के लिए प्रेरित नहीं करता है। आचार्य उमास्वाति ने प्रशमरति प्रकरण में इसके निमित्तपने का उदाहरण देते हुए बतलाया है कि जिस प्रकार पानी मछलियों के तैरने में मात्र सहायक है, प्रेरक नहीं, उसी प्रकार से धर्मास्तिकाय द्रव्य भी क्रियाशील द्रव्यों की गति में सहायक मात्र है, उसका प्रेरक नहीं 112 । इस प्रकार जीव और पुद्गल की गति में सहायक होने के कारण धर्मास्तिकाय एक स्वतंत्र द्रव्य है। ___ धर्मास्तिकाय के कारण ही लोक-अलोक का विभाग किया गया है। यदि थर्मास्तिकाय द्रव्य नहीं होता तो लोकालोक का विभाग ही समाप्त हो जाता। अतः लोकालोक के विभाग के सद्भाव से भी धर्मास्तिकाय की सत्ता सिद्ध होती है। ..
धर्मास्तिकाय अरुपी द्रव्य है, क्योंकि इसमें रस, रुप, गंध और स्पर्श-चारो गुणों का अभाव है 113 । यह सम्पूर्ण लोकाकाश में व्याप्त है, अखण्ड है, स्वभाव से विस्तृत है और पारमार्थिक दृष्टि से अखण्ड एक द्रव्य होने पर भी व्यावहारिक दृष्टि से असंख्य प्रदेश युक्त है।14। वह क्रियाशील नहीं हैं। 15 किन्तु भावशील अर्थात् परिणमनशील है।
उक्त विश्लेषण के आधार पर धर्मास्तिकाय की निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती
यह एक अखंड द्रव्य है। यह अमूर्तिक है। यह असंख्यात प्रदेशी है। यह निष्क्रिय द्रव्य है। यह एक है। यह अस्तिकाय है। यह लोक में व्याप्त है। यह नित्य परिणामशील है। यह पारिणामिक भाववाला है। यह गति में निमित्त कारण है। अधर्मास्तिकाय :
प्रशमरति प्रकरण में धर्मास्तिकाय की तरह अथर्मास्तिकाय द्रव्य की भी कल्पना की गयी