Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 53
________________ प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन अचेतन द्रव्य का है। आजकल वैज्ञानिक जिसे जड़ द्रव्य कहते हैं उसे ही जैन दार्शनिकों ने पुद्गल कहा है। पुद्गल का स्वरुप : प्रशमरति प्रकरण में आचार्य उमास्वाति ने स्पर्श, रस, गंध, रुप और वर्ण इन गुणों से युक्तवाले द्रव्य को पुद्गल कहा है 100 । अर्थात् स्पर्शादिवाला होना पुद्गल का पहचान है। इसके अतिरिक्त मूर्तत्व और अचेनत्व भी पुद्गल के विशेष गुण माने गये हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि जैन दर्शन में प्रतिपादित छः द्रव्यों में से पुद्गल ही मूर्तिक द्रव्य है। इसे रुपी भी कहा जाता है क्योंकि इसमें रुप, रस, गंध, और स्पर्श - चारों गुण पाये जाते हैं। ये चारो गुण परस्पर में अविनाभावी है। इस प्रकार जितने भी परमाणु हैं, उन सबमें चारो ही गुण पाये जाते है। इसलिए वे रुपी कहे जाते है। यह अस्तिकाय द्रव्य है 101, क्योकि यह प्रदेश प्रचय वाला है। पुद्गल संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश वाले होते हैं। ___ यद्यपि पुद्गल एक प्रदेशी है, लेकिन फिर भी इसे अस्तिकाय माना गया है। इसका कारण यह है कि पुद्गल में निहित स्निग्ध और रुक्ष शक्तियों की अपेक्षा से इसे अस्तिकाय कहा गया है 102 1 पुद्गल के उपकार : उमास्वाति ने अन्य द्रव्यों के साथ पुद्गल द्रव्य के भी उपकार का विवेचन किया है। प्रशमरति प्रकरण में उन्होंने कहा है कि स्पर्श, रस, गन्य, वर्ण, शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, आकार, खण्ड, अन्धकार, छाया, चन्द्रमा आदि का प्रकाश, तथा संसारी जीवों के ज्ञानावरणादि कर्म, शरीर, मन, वचन, क्रिया, श्वासउच्छवास, सुख और दुःख तथा जीवन और मरण में सहायक स्कन्ध - ये सब पुद्गलकृत उपकार है 103। यदि पुद्गल द्रव्य नही होता तो इन सबकी कल्पना करना भी असम्भव होता है। इस प्रकार पुद्गल द्रव्य जीव का बहुत बड़ा उपकार करता है। संसारी आत्मा और पुद्गल का परस्पर में घनिष्ट संबन्ध है। जबतक जीव मुक्त नहीं होता. तबतक पुद्गल संसारी आत्मा से अलग नही हो पाता। पुद्गल द्रव्य के औदयिक और पारिणामिक भाव होते हैं। इसका परमाणु रुप अनादि है और दयणुक, बादल, इन्द्र, धनुष आदि परिणाम सादि हैं। परमाणु और स्कन्ध में रुपी-रस आदि परिणाम पाये जाते हैं तथा परमाणुओं के मिलने से जो दयणुक आदि परिणाम बनते है, वे औदयिक है। अतः पुद्गल में औदयिक और पारिणामिक भाव होते हैं 104 । यह कर्तृत्व पर्याय से रहित है 105। पुद्गल के भेद : ___ आचार्य उमास्वाति ने प्रशमरति प्रकरण में पुद्गल के दो भेद बतलाये हैं - (1) अणु (2) स्कन्ध 1061

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