Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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दूसरा अध्याय
अणु :
पुद्गल का वह अन्तिम भाग, जिसका फिर विभाग न हो सके, अणु कहलाता है। अणु इतना सूक्ष्म होता है कि वह स्वयं ही आदि, मध्य और अन्त है। वह स्वयं एक प्रदेशी है। पुद्गल के सबसे छोटे अवयव को प्रदेश कहते हैं। अतः परमाणु बहुप्रदेशी न होने के कारण अप्रदेशी है। परन्तु अप्रदेशी में भी रुपादि गुण पाये जाते हैं। इसलिए गुणों की अपेक्षा से परमाणु भी सप्रदेशी ही है। वह नित्य है, क्योंकि उसका कभी नाश नहीं होता किन्तु, परमाणु अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण दृष्टिगत नहीं होता है 107 ।
उक्त विश्लेषण से परमाणु की निम्नलिखित विशेषताएं परिलक्षित होती है। परमाणु समस्त स्कन्थों का अन्तिम भाग है। वह परमाणु नित्य है। वह शब्द रहित है। वह एक है एवं अविभागी है। परमाणु मूर्तिक है। यह परिणमनशील है। प्रदेश - भेद न होने पर भी स्पर्शादि को अवकाश देता है, इसलिए यह सावकाशी है। द्वितीयादि प्रदेशों को अवकाश न देने के कारण यह अनवकासी है। स्कन्धों का कर्ता और भेदक है। काल और संख्या का विभाजन है। एक रस, एक वर्ण, एक स्कन्ध दो स्पर्शवाला है। शब्द का कारण है, किन्तु कार्य नहीं है। यह भिन्न होकर भी स्कन्ध का घटक है। यह स्वयं आदि, स्वयं मध्य और स्वयं अन्तरुप है। यह इन्द्रिय ग्राह्य है 108 ।
स्कन्ध :
___पुद्गल का दूसरा भाग स्कन्ध है। आचार्य उमास्वाति ने प्रशमरति प्रकरण में स्कन्ध की परिभाषा देते हुए बतलाया है कि जो दो या दो से अधिक परमाणुओं के मेल से अथवा परस्पर में बंध जाने से उत्पन्न होता है, उसे स्कन्ध कहते हैं। अर्थात् अनेक परमाणुओं का संघात विशेष स्कंध है 101
जिस प्रकार दो परमाणुओं के मेल से द्वयणुक नामक स्कंध और तीन परमाणुओं के मेल से त्रयणुक नामक स्कंध होता है, इसी प्रकार अनन्त परमाणुओं के मेल से अनन्त स्कंध होती हैं। अतः परमाणुओं का मेल ही स्कन्ध उत्पत्ति का कारण है 110 |
पुगल
परमाणु (अणु)
स्कंथ